________________
116
Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
352)
Maanagginovva dhumam......
(p. 634) मअणग्गिणो व्व धूम, मोहपिछं व लोअदिट्ठीए। जोव्वण-धरं व मुद्धे, वहसि सुअंधं चिहुर-भारं ॥ (मदनाग्नेरिव धूमं मोहन-पिच्छमिव लोकदृष्टेः। यौवन-ध्वजमिव मुग्धे वहसि सुगन्धि चिकुर-भारम् ॥) ..
-Cf. GS VI. 72
353) Sahi sahasu tena samam......
(p. 634)
This gāthā is already cited earlier on p. 591. Vide S. No. (221) supra.
354) Lajja-visamthulae......
(p. 634)
This verse / gāthā is highly corrupt and therefore, obscure.
355) Dalihai asoyam dharei ( ? )......
__(p. 634) दुलह-असोअं धरेइ, वहुआएँ वण्णिअं/बहुएँ ओणामिअं दिअरो। उण्णामिअ-मासल-बाहुमूल-णिव्वण्णण-सअण्हो॥ (दुर्लभाशोकं धारयति वध्वा वर्णितम् वध्वा अवनामितं देवरः।
उन्नामित-मांसल-बाहुमूल-निर्वर्णन-सतृष्णः॥) 356) Ettāhe cia moham......
(p. 634) एताहे चिअ (? एत्ताहि च्चिअ) मोहं, जणेइ बालत्तणे वि दीसंती/वटुंती । गामणि-धूआ विसलआ, वड्ढंती काहिइ अणत्थं ॥ (इदानीमेव मोहं जनयति बालत्वे ऽ पि दृश्यमाना/वर्तमाना। ग्रामणी-दुहिता विषलता वर्धमाना करिष्यत्यनर्थम् ॥)
Note: The earlier part of the second half of this gatha is metrically defective. If we read 'sua' for dhia' the defect is overcome.
-Cf.GS V. 10
357)
(p. 634)
Niddavasamaanummila...... णिद्दा-वस-मअणुम्मिल्ल-तारआवंग-घोलिरे णअणे । गिम्हावरण्ह-सुत्तुट्ठिआएँ दिअरो तुहं णिअइ॥ (निद्रावश-मदनोन्मील-तारकापाङग-घूर्णनशीले नयने । ग्रीष्मापराहूण-सुप्तोत्थिताया देवरस्तव पश्यति ॥)