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१७. उवसग्ग-हरं स्तोत्र सूत्र विभाग १०७ sutra part
17. uvasagga-haram stotra हे महायशस्विन्! मैंने इस प्रकार भक्ति से भरपूर हृदय से आपकी स्तुति | Ohgreatly renowned! in this way,Thave eulogizedyouwithaheartfull of devotion. की है. इसलिये हे देव! जिनेश्वरों में चंद्र समान हे श्री पार्श्वनाथ! भवो | Thereforeohgod! oh sri parsvanāthal, like the moon amongjinesvaras, bestow |भव बोधि को प्रदान कीजिए. ..
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upon me the seed of attaining perfect knowledge in every cycle of birth and rebirth........
..................5. विशेषार्थ :
Specific meaning - उपसर्ग = देव, मनुष्य या तिर्यंच कृत उपद्रव.
upasarga = Calamities created by heavenly beings, human beings or animal
beings. कल्याण = संपत्ति का उत्कर्ष या आरोग्य और सुख को लानेवाला. | kalyana = Prosperity of wealth or which brings health and peace. | मंत्र = मन का रक्षण करने वाला और गुप्त रूप से कहा जाने वाला | mantra = Letter or aphorism protecting the mind and being recited secretly.
वर्ण या सूत्र. दुःख = शारीरिक और मानसिक पीड़ा.
duhkha = Physical and mental agony. सम्यक्त्व = मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम, उपशम या क्षय से | samyaktva = A special quality of pure faith towards sudeva, suguru and
आत्मा में उत्पन्न होने वाला सुदेव-सुगुरु-सुधर्म के प्रति शुद्ध श्रद्धा | sudharma appearing in the soul by partial mitigation and partial destruction, का विशिष्ट गुण,
by mitigation or by destruction of mithyātva mohaniya karma. सुदेव = अठारह दोषों से रहित परम ज्ञानी, वीतराग, अरिहंत भगवान | sudeva = The omniscient, vitaraga, arihanta bhagavāna [tirthankara] without तीर्थंकर तथा आठों कर्मों से रहित सिद्ध भगवंत.
eighteen types of defects and siddha bhagavanta free from all the eight karmas.
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प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन- भाग-१ Jain Education International
Pratikramana Sutra With Explanation - Part - 1
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