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१७. उवसग्गहरं स्तोत्र
सूत्र विभाग
सुगुरु
= पंच महाव्रत धारी साधु.
| सुधर्म = वीतराग केवली भगवंत द्वारा प्ररूपित शुद्ध, सत्य स्याद्वादमय [विविध दृष्टिकोणों से तर्क के अनुसार] और मोक्ष दिलाने वाला धर्म.
| मिथ्यात्व मोहनीय कर्म = वह कर्म, जो धर्म से विपरीत बुद्धि उत्पन्न करता है और शुद्ध धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न होने नहीं देता है.
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १
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sūtra part
suguru = sadhu observing five great vows sudharma = dharma which is perfect, true, syādvādamaya [logical in various point of views], results in salvation and is revealed by vitaraga kevali bhagavanta.
सूत्र परिचय :
Introduction of the sutra :
श्री
भद्रबाहु स्वामी द्वारा रचित इस सूत्र में सर्व विघ्नों को दूर करने In this sutra composed by Śrī bhadrabāhu svami, the eulogy of the qualities of वाले श्री पार्श्वनाथ प्रभु के गुणों की स्तुति की गयी है. lord śri pārsvanatha prabhu, the remover of all impediments is being done.
mithyātva mohaniya karma = That karma which produces perception against the perfect/true dharma [i.e. delusion] and do not allows to create desire for perfect dharma.
17. uvasagga-haram stotra
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Pratikramaņa Sūtra With Explanation - Part - 1
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