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१७. उवसग्गहरं स्तोत्र
सूत्र विभाग दिज्ज = प्रदान कीजीए, बोहिं= बोधि को भवे भवे = भवो
भव
पास! जिण-चंद! = जिनेश्वरों में चन्द्र समान हे श्री पार्श्वनाथ ! पास ! = हे श्री पार्श्वनाथ!, जिण = जिनेश्वरों में चंद ! = चन्द्र
समान
गाथार्थ :
१.
उपद्रवों को दूर करने वाले पार्श्व यक्ष सहित कर्म समूह से मुक्त, सर्प के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के गृह रूप श्री पार्श्वनाथ भगवान को मैं वंदन करता हूँ. जो मनुष्य विसहर फुलिंग मंत्र को नित्य स्मरण करता है, उसके ग्रह दोष, महारोग, महामारी और विषम ज्वर शांत हो जाते हैं......... मंत्र तो दूर रहे, आपको किया हुआ प्रणाम भी बहुत फल देने वाला है. मनुष्य और तिर्यच गति में भी जीव दुःख और दरिद्रता को प्राप्त नहीं करते हैं. ३.
२.
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १
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चिंतामणि रत्न और कल्प वृक्ष से भी अधिक शक्तिशाली आपके सम्यक्त्व | की प्राप्ति होने पर जीव सरलता से अजरामर [मुक्ति] पद को प्राप्त करते हैं.
४.
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sūtra part
17. uvasagga-haram stotra
dijja = bestow, bohim = the seed of attaining perfect knowledge, bhave bhave in every cycle of birth and rebirth
pāsa! jiņa-canda! = oh śri pārsvanatha! like the moon among jineśvaras pāsal = oh śrī pārśvanāthal, jina = among jineśvaras, candal = like the
moon
Stanzaic meaning :
am obeisancing to Śrī pārśvanātha bhagavāna along with pārśva yaksa, the eliminator of disturbances free from the mass of karmas, destroyer of snake's poison, like an abode of auspiciousness and prosperity.
1.
The man who always remembers the hymn of visahara phulinga, his planetary misfortunes, fatal diseases, epidemics and deadly fever are pecified...........2.. Hymn be apart, even an obeisance offered to you will result too many fruits. Living beings even in the form of human beings and animals will not suffer from agony and poverty. ........ .............3. By earning your right faith more effective than the most precious heavenly jewel and miraculous heavenly tree, the living being easily attains the place of undecayedness and immortality [salvation]......
.4.
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