________________
११. जग चिन्तामणि चैत्य-वन्दन
sūtra part
गाथार्थ :
Stanzaic meaning :
हे भगवन्! स्वेच्छा से आज्ञा प्रदान करो. मैं चैत्यवंदन करूँ ? [मैं] oh bhagavan! give the permission voluntarily. Shall [i] perform the caityaआपकी आज्ञा स्वीकार करता हूँ.
vandana? [i] am accepting your order.
| जगत के लिये चिंतामणि रत्न समान!, जगत के स्वामी!, जगत् के गुरु! | जगत् के जीवों का रक्षण करने वाले! जगत् के बंधु !, जगत् के सार्थवाह! जगत् के सर्व भावों को जानने और प्रकाशित करने में निपुण ! अष्टापद | पर्वत पर स्थापित की गई हैं जिनकी प्रतिमाएँ ऐसे! आठों कर्मों को नाश करने वाले!, अखंडित शासन वाले ! हे चौबीसों जिनेश्वर! आपकी जय हो.
१.
Oh all the twenty four jineśvaras!, alike the fabulous mythological gem for living beings of the universel, the lord of the universel, the preceptor of the universel the protector of the living beings of the universel, the brother of the universel, the supreme guide of the world, proficient in knowing and manifesting all the truths of the universe!, such whose idols are consecrated on aṣṭāpada mountain, the annihilator of all the eight karma sl, the unimpaired ruler!, be your victory... 1. At the most one hundred and seventy jineśvaras having first sanghayana, nine crore kevali, nine thousand crore [ninety arab] sādhus are found moving about in the lands of activities. Eulogy of twenty jineśvara munis, two crore kevalajñānī and two thousand crore [twenty arab] sādhus of present era is performed every morning.......... Ohsvāmi! be your victory, oh svāmi! be your victory. Oh Śrī sabhadeva gracing the pilgrimage center of śatrunjayal, Oh Śrī neminātha prabhu gracing giranāra mountain!, Oh Śrī mahāvira svāmi, an ornament of sacoral, oh sri Pratikramana Sutra With Explanation - Part - 1
............ 2.
www.jainelibrary.org.
सूत्र विभाग
कर्म भूमियों में प्रथम संघयण वाले उत्कृष्ट से एक सौ सत्तर जिनेश्वर, नव क्रोड़ केवली और नव हजार क्रोड़ [ ९० अरब] साधु विचरण करते हुए पाए जाते हैं. वर्तमान काल के बीस जिनेश्वर मुनि, दो क्रोड़ केवल ज्ञानी और दो हजार क्रोड़ [२० अरब ] साधुओं का प्रातःकाल में नित्य स्तवन किया जाता है.
२.
हे स्वामी! आपकी जय हो! हे स्वामी! आपकी जय हो! शत्रुंजय तीर्थ पर विराजित हे श्री ऋषभदेव!, गिरनार पर्वत पर विराजमान हे श्री नेमिनाथ प्रभु!, साँचोर के शृंगार रूप हे श्री महावीर स्वामी!, भरूच प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन भाग १
Jain Education International
-
८१
81
For Private & Personal Use Only
11. jaga cintamani caitya-vandana