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६. तस्स उत्तरी सूत्र
सूत्र विभाग ४४ suira part
6. tassa uttari sutra प्रायश्चित्त [पायच्छित्त] = पश्चात्ताप / पाप को छेद कर मन शुद्ध करने | prayascitta [payacchitta] = repentance / the rite of purifying the mind by| की क्रिया.
____destroying the sins. शल्य = आत्मा में पीड़ा उत्पन्न करने वाले भाव,
śalya [thorns) = Emotions (thoughts) distressing the soul. तीन प्रकार के शल्य :
Three types of Salya :१. मिथ्यात्व शल्य- सत्य तत्त्व को असत्य और असत्य तत्त्व को सत्य ___1.mithyatvasalya-Tobelievetherightprinciples as false andwrongprinciples मानना.
as right. २. माया शल्य-कपट करना.
2. māyā salya-To commit fraud/ to practise deceit. ३. निदान शल्य- भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के रूप में धर्म के फल 3. nidāna salya-To seek fulfilment of worldly desires as a result of performance की इच्छा करना.
___of religious rites. सूत्र परिचय :
Introduction of the sūtra :इरियावहिया सूत्र से पापों की सामान्य शुद्धि रूप प्रतिक्रमण करने के | As a subsequent rite, in this sūtra, five purposes of the kāussagga for destroying बाद भी बचे हुए पापों को नाश करने के लिए विशेष शुद्धि के लिए]] the sins [for rectifying distinctively] that remain even after performing normal उत्तर क्रिया रूप काउस्सग्ग के पांच हेतु इस सूत्र में बताये हैं. rectification of pratikramana of the sins by iriyāvahiyā sūtra are shown.
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Pratikramana Sūtra With Explanation - Part - 1
प्रतिक्रमण सूत्र सह विवेचन- भाग-१ Jain Education Intematon
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