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अनु. विषय
पाना नं.
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3 द्वितीय सूत्रछा अवतरस, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ उस संयभमें पराम्भ रते हमे उस अयेत साधुलो । तास्पर्श, शीतस्पर्श, स्पर्श और देशभशस्पर्श प्राप्त होते हैं। वह साधु उन स्पर्शो छो तथा अन्य भी विविध स्पर्शो छो सहता है। उसठी आत्मा लाघवयुत होती है । उसछा यह भयेलत्व तप ही है। उस साधुजी यह भावना सर्वहा होनी याहिये डिभगवान्ने से जहा है वह सर्वथा संगत है। ५ तृतीय सूत्रछा अवतरराया, तृतीय सूत्र और छाया। ६ पिस भिक्षुष्ठो यह होता है ठि मैं दूसरे भिक्षुओंठे लिये
मशन आहिला रहूंगा और दूसरोंछे लाये हुसे सशनाहिछो स्वीछार भी उगा १ । मिस भिक्षुछो यह होता है डिमैं दूसरे भिक्षुओंडे लिये अशनाहि ला र हूंगा और दूसरेठे लाये हमे अशनाहिज्छो स्वीछार नहीं
जा २ । पिस भिक्षुछो यह होता है छिमें दूसरे भिक्षुसोंडे लिये मशनाहिला नहीं हूंगा, परन्तु दूसरे लाये हुसे अशनाछिछो स्वीछार गा 3। मिस भिक्षुछो यह होता है छि-मैं दूसरे भिक्षुओंछे लिये अशनाघिउला र नहीं गा और न दूसरेठे लाये हमे भशनाहिको स्वीकार
गा ४ । ये यार प्रहारछे अभिग्रहधारी भुनि होते है। पांयवे प्रहार अभिग्रहधारी मुनि होता है। किसष्ठा अभिग्रह छस प्रहारहा होता है ॐि मैं अपनेसे अये हमे मेषशीय अशनाद्विारा साधर्मियों छी वैयावृत्य (गा और साधर्भिों द्वारा भी अपनेसे अवशिष्ट ध्येि गये मेषागीय अशनाछिछो स्वीछार (गा। ७ यतुर्थ सूत्रठा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया। ८ डिस साधुछो यह भासूम हो छिमेरा शरीर समसशस्त नहीं है वह साधु संथारा छरे । देश सभाप्ति ।
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॥छति सप्तभ Gटेश ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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