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________________ अनु. विषय पाना नं. ८ पिस भुनिष्ठो यह होता है छि मैं रोगातष्ठोंसे अथवा शीतादि या स्त्री उपससे स्पष्ट हो गया हूँ, मै छनछो सह नहीं सहता हूँ, वह वसुभान् भुनि उस समय अपने अन्तःश से हेय और उपाध्यछा वियार र उन उपसर्गोठा प्रतिहार नहीं डरते हैं । मेसे तपस्वी मुनि स्त्रियोंठे उपसर्ग उपस्थित होने पर वैहायस माहि भरद्वारा शरीर छोऽ देते हैं परन्तु यारियठो नहीं छोऽते हैं । मेसे मुनिका वह भरा जालभरा नहीं है, अपितु वह परिऽत भरा ही है। वह मुनि वस्तुतः संसारान्तठारी ही होता है। इस प्रहार वह विभोहळा आयतनस्व३१ वैहायस मृत्यु ही उस साधुझे हित माहिछी धरनेवाली होती है। ૨પ૩ ॥छति यतुर्थ देश सम्पूर्ण ॥ ॥अथ प्रश्वभ देश ॥ રપ૬ १ प्रश्वभ देशछा यतुर्थ शळे साथ संवन्धप्रतिपाहन, प्रथम सूत्रमा अवतरा, प्रथम सूत्र और छाया। २ को भिक्षु, हो वस्त्र और सेठ धारा हरनेछे लिये अभिग्रहसे युज्त है उसे यह भावना नहीं होती हि तीसरे वस्यठी यायना उगा । वह यथाभ मेषशीय वस्त्रोंछी यायना पुरता है, उसष्ठी छतनी ही सामग्री होती है। म हेमन्त ऋतु जीत आती है और ग्रीष्मऋतु आने लगती हैतम वे परिवस्त्रोंछो छोऽहेवें । अथवा शीत सभय जीतने पर भी क्षेत्र, छाल और पुषस्वभावळे द्वारा यहि शीताधा हो तो होनों वस्त्रोंछो धारा डरें। शीतष्ठी आशंठा हो तो अपने पास रखें, त्यागे नहीं। अथवा भवभयेत हों, अथवा मेडशाटधारी होवें, अथवा सयेल हो भवें । इस प्रकारसे भुनिछी मात्भा । लाधव गुरासे युज्त हो जाती है। भगवान्ने से जहा है वह सर्वथा सभुथित है, उस प्रहार भुनि सर्वघा भावना श्री. आयासूत्र : 3
SR No.006403
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size11 MB
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