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अनु. विषय
पाना नं.
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उरें । यहि भुनिष्ठो मेसा लगे हिरोगाष्टिठोंसे स्पृष्ट हो गया हूं, निर्मल हूं, मैं भिक्षायर्याठे लिये गृहस्थडे घर नने में असमर्थ हूं, उस समय यहिछोछ गृहस्थ मुनिळे लिये अशनाछिसाभग्रीडी योना रे तो भुनि उसे अपनीय सभमर छली भी नहीं स्वीठारें। उ द्वितीय सूत्रमा अवतरराश, द्वितीय सूत्र और छाया। ४ मिस भिक्ष छा मायार छस प्रकार का होता है डि--(१) पिसको डिसीने वैयावृत्य उरने की प्रेरशा नहीं डी वह यदि मलान होगा और वह आर भुज्ञ लान हो निवेहित।
रेगा ठि मैं आपठी वैयावृत्ति (गा तो मैं साधर्मिठों द्वारा निर्णय के लिये ही जाती हछवैयावृत्ति स्वीछार (गा। और अग्लान तथा दूसरों से प्रेरित मैं लान साधु ही वैयावृत्ति अपने धर्मनिराठी छच्छा से उगा उसडे लिये आहाराठि ठी गवेषगा उगा और दूसरों लाये हमे आहार जा भी स्वीछार उगा । (२) दूसरों लिये आहाराहिला अन्वेषा गा और दूसरों में लासे हो आहारा स्वीकार नहीं गा। (3) दूसरों के लिये आहार हा मान्वेषाा नहीं गा परन्तु दूसरों के लाये हुसे आहार हा स्वीटार गा । (४)दूसरों के लिये आहार हा अन्वेष नहीं गा और न दूसरों लाये हमे आहार हा स्वीकार हीगा । उस प्रहार अभिग्रहधारी भुनि अपने अभिग्रह को पालते हो, शान्त, विरत, होर और अन्तःराडाडी वृत्तियोंछो विद्ध उर लानावस्थामें लज्तप्रत्याभ्यान से ही अपने शरीर का परित्याग छरे । उस मुनि उा वह कालपर्याय ही है । उस छा छस प्रहार से शरीर त्याग धरना विभोहायतन - भहापु३षर्तव्य ही है और,हित, सुज, क्षभ, निःश्रेयस मेवं मानुगाभिही है। देश सभाप्ति ।
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॥छति प्रश्वभ देश ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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