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अनु. विषय
पाना नं.
८ वह साधु गृहपतिद्वारा प्रहत्त उस आहाराहिछो उभी भी स्वीटार न छरे । छतना ही नहीं वह साधु शाध्यादि परतीर्थिों छो उभी भी अशनाहिऊनही हेवे, न उन्हें निभन्त्रित रे, न उनछी सेवा उरे, और न उनका आहर
ही रे। ८ प्रश्वभ सूचठा अवता और प्रश्वभ सूत्र । १० भगवान्छी आज्ञा है हिसाधु अपने साधर्भिसाधुटो
सशनाछि प्रधान छरे, उसो निभन्त्रित रे, उसछी सेवा ग्रे और उसठा आरसत्कार छरे ।
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॥ति द्वितीय देश ॥
॥अथ तृतीय देश ॥
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१ तृतीय शठा द्वितीय शिळे साथ सम्मन्धथन ।
प्रथम सूचठा सवतराश, प्रथम सूत्र और छाया। २ ठितनेछ भनुष्य युवावस्थामें ही संसुद्ध हो मुनि होते हैं। उनमें से सुद्धोधित होते हैं वे परिऽतों अर्थात् तीर्थरगाधर आहिछे सभीष धर्भवयन सुन र, उन्हें ध्यमें उतार र सभताभावठा अवलम्जन रे; ज्यों डि तीर्थरगाधर माठिोंने सभतासे ही धर्मष्ठा प्र३पाया ठ्यिा है। उन साधुओंठो याहिये डिवे शाहि विषयोंडी अभिलाषासे रहित हो र, प्राशियोंटी हिंसा और परिग्रह नहीं उरते हुमे वियरते हैं । मेसे मुनि छली भी परिग्रहोंसे लिप्त नहीं होते हैं, और न ये प्राशियोंडे उधर भनोवामुकाया ही प्रयोग उरते हैं। मेसे भुनियोंछो तीर्थरोंने भहान और अग्रन्थहा है । मेसे भुनि भोक्ष
और संयभठे स्व३पछे परिज्ञाता होते हैं, और वे हेव, नारठ, भनुष्य और तिर्थयडे नभ – भरशाहिदुःजोंठो भान हर इभी भी पार्भ नहीं उरते हैं।
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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