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________________ अनु. विषय पाना नं. २१८ ૨૨૦ ૨૨૯ ८ तृतीय सूत्रमा अवतरा, तृतीय सूत्र और छाया । ८ तिने लोगोंछो मायारगोयर अर्थात् सर्वज्ञोपहिष्ट संयभ भार्गठा परियय नहीं होता है, अतः वे भारम्भार्थी होते हैं, और उन आरम्भार्थी लोगोंछी तत्त्वछे सम्मनधमें परस्पर भिन्न भिन्न दृष्टि होती है । छस लिये उनका धर्भ वास्तविछ नहीं होने जारा भव्योंडे लिये सर्वहा परित्याश्य है। १० यतुर्थ सूत्रधा अवतरराश, यतुर्थ सूत्र और छाया । ११ छस अनेछान्त धर्भठा प्र३पा भगवान् तीर्थंटरने ठ्यिा है। उन्होंने अपने साधुओंठे लिये जहा है टिपरवाधियों साथ माहमें भाषासभितिजा घ्यान सतत रमें। वे परवाहियोंसे इस प्रकार डिआपठे शास्त्रोंमें षवनियोपभईन३प आरम्भ, धर्भधमें स्वीकृत घ्यिा गया है वह हमें ग्राह्य नहीं है; ज्यों छि आरम्भ नरनिगोहाध्छेि डारश होने से पाप है। हम सावधायराडे त्यागी है, अतः हमें घस विषयमें मापळे साथ वाह नहीं रना है और यही हमारे लिये उचित भी है।धर्भ न ग्राभमें है और न सराय, धर्भ तो छवाछवाहि- तत्त्व - परिज्ञानपूर्व निरखधानुष्ठानमें ही है-यह भाहन - भगवान् महावीरता उपदेश है। भगवान्ने तीन याभोंडा प्र३पारा ड्रिया है, छन याभोंमें संध्यभान और समुत्थित आर्यन को छिपाप से निवृत हैं वे ही भनिधान गये हैं। १२ प्रश्चभ सूत्रमा अवतरा, प्रश्चभ सूत्र और छाया । १3 उर्वाधिसभी दिशाओं मेवं विहिशासोंमें सूक्ष्भमाघ्राधि सभी प्राशियोंष्ठी विराधना३प छर्भसभारम्ल होता है-छस मातठो मन र भेधावी साधु न स्वयं छन षवनिहायों हे विषयमें EDIZा सभारम्भ रे, न दूसरोंसे रावे, न उरते हसे डी अनुभोना ही छरे । हे शिष्य ! तुम्हें घस प्रारसे वियारना चाहिये ठिछन Eऽसभारंभ रनेवालोंठे साथ वार्तालाप उरने में भी मुझे सभा होती है, झिर मैं ELऽसभारम्भहा अनुभोहन से हैं? मैं उभी छसिष्ठा २३० श्री मायासंग सूत्र : 3 २५
SR No.006403
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size11 MB
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