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अनु. विषय
॥ अथ द्वितीय उद्देशः ॥
१ प्रथम उहेशडे साथ द्वितीय उशडा सम्जन्धऽथन २ प्रथम सूत्र और छाया ।
क्ष
3 सिलोङमें तिने षड्भुवनियोंडे रक्षण संयमी मुनि होते हैं । वे मनुष्यन्भ - जार्यक्षेत्राहि अवसर समझते हैं । वे अर्भक्षपराडे ISI अन्वेषा डरते रहते हैं । स सम्यग्दर्शनज्ञानयारित्र३य मार्गा उपदेश तीर्थं रोने प्रिया है । साधु डली भी प्रभाव नहीं डरें डिसी ली वो आसाता नहीं पहुँचावे इस संसार में मनुष्योंडी ३थि भित्रर होती है इस लिये सुज हु:जली सजडे लिये समान नहीं है । इसलिये मुनि हिंसा मृषावाह जाहिसे रहित होडर, परीषहोपसर्गोसे स्पृष्ट होता हुआ ली उन शज्हस्पर्शाहिविषय-भनित परीषहोंठो भुतनेडा प्रयत्न पुरे ।
पाना नं.
४ द्वितीय सूत्र और छाया ।
प परीषहोंठो भुतनेवाला मुनि शमितापर्याय अथवा सभ्यपर्याय हा भता है । इस प्रकार मुनि यारित्रमोहनी याहि अथवा हिंसाहि पापडर्भों में खासत नहीं होता है । यहि उसको ऽली शीध प्राएा लेनेवाले शूलाहि रोग, भेडि जातं हे भाते हैं हो भते हैं तो वह उनी वेहनाओ शान्तिपूर्वऽ सहता है, औरवह इस प्रकार विचारता है - यह स्वर्भनित वेघ्ना पहेले या पीछे मुझे ही सहनी होगी । यह शरीर विनाशशील है, विध्वंसनशील है, अधुव है, अनित्य है, अशाश्वत है, यथापययि है, परिएामनशील है । अतः जेसे शरीरो और सुलभ और जोधिताल जाहि अवसर था डर तथ संयम जाहि द्वारा अपने भुवनो सइस जनाना याहिये ।
तृतीय सूत्र डा अवतरा, तृतीय सूत्र और छाया । ७ शरीर डी विनाशशीलता जाहि हेजनेवाला मुनि नराहि
गति लागी नहीं होता है ।
८ यतुर्थसूत्रा अवतरा, यतुर्थ सूत्र और छाया ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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