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अनु. विषय
पाना नं.
८ छस लोऽभे हितने मनुष्य परिग्रही होते हैं । थोऽा या
अहत, माशु या स्थूल, सथित या अथित ने भी परिग्रह छनळे पास होते हैं उन्हीं परिग्रहों में ये भज्न रहते हैं। यह शरीर ही डिसीर हो भहालयाय होते है। मुनि, ससंयभी लोगों धन हो या व्यवहार को महाभय छा जारशानर उससे दूर रहता है। द्रव्यपरिग्रह संभन्ध त्यागी
परिग्रहनित लय नहीं होता है॥ १० प्रश्वभ सूत्र और छाया ११ निष्परिग्रह भुनि अपने पुर्तव्य भार्ग में भगइछ होता है,
प्रत्यक्षज्ञानियोंने मेसे शिष्यों डे लिये ही ज्ञान, दर्शन, यारित्र हा उपदेश घ्यिा है । इसलिये हे भव्य ! भोक्ष डी ओर लक्ष्य रजहर संयभमें विशेषतः पराभशाली जनो। मेसे संयभी ही ब्रह्मयारी होते हैं। यह सम मैंने तीर्थर भगवान् उ भुज से सुना है, इसलिये यह सम भेरे हघ्यों स्थित है। ब्रह्मचर्यमें स्थित मनुष्य का ही सन्ध से प्रभोक्ष (छुटछारा) होता है । अथवा-ज्ञानावरशीयाहि अष्टविध धर्मो का सम्मन्ध३प प्यन्ध और उन धर्मो से पृथ होना३५, प्रमोक्ष, ये होनौ मन्तःशमें ही हैं। आरम्मपरिग्रह या अघ्रशस्त भाव से रहित साधु, सभी प्रकारों डे परीषहों छो यावशीन सहे। असंयतोंडी तीर्थरोपहिष्ट भार्ग से अहिर्वी सभओ। तीर्थरोपहिष्ट भार्ग अन्तर्वर्ती मुनि मप्रभत्त होर वियरे। भगवत्प्रइपित छस यारिय छा। परिचालन, हे शिष्य ! तुभ अरछी तरह रो। Eश सभाप्ति। ८३
॥ति द्वितीय उदेश ॥
॥अथ तृतीय
श ॥
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१ द्वितीय हैश साथ तृतीय हैश हा संवन्ध ज्थन । २ प्रथम सुत्रमा अवतराश, प्रथम सुत्र और छाया।
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર ૩