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अनु. विषय
पाना नं.
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१० संशय डे परिज्ञान से व संसार डे प्रति संशयशील हो उसष्ठा परित्याग रता है, और संशय हे अपरिज्ञान से
व न तो संसार प्रति संशयशील होता है और न उसमा परित्यागही उरता है। ११ यतुर्थ सूत्र हा अवता , यतुर्थ सूत्र, छाया। १२ संसारछे छूटुविधाछो माननेवाले यतुर पु३ष, डिसी भी
प्रठारछे सागारिका सेवन नहीं डरते । प्ले भूढ पुष महोघ्यसे सागारिछ सेवन उरते हैं, उनष्ठी प्रथम मालता सागारि सेवन उरना है और दूसरी आलता पूछे भने पर उसठो छिपाने लिये असत्य भाषा उरना है। इस लिये प्राप्त शाहि विषयोंजे परित्याग हर और अप्राप्त विषयोंछो भनसे भी यिन्तन नहीं उरते हुसे भव्य छव, उन विषयों छो छहलोड और परलोष्ठभे मुटु इस हेनेवाले मन र हुसरे लोगोंठो भी भैथुन मनासेवनीय है – मेसा
उपदेश । १3 प्रश्वभ सूत्र और छाया । १४ ठितनेछ भनुष्य ३५में और ठितने स्पर्शमें गृद्ध हो र
नराहि गतियों भागी होते हैं। सावध व्यापार रनेवाले भनुष्य, छन सावधव्यापारतत्पर मनुष्योंमें उत्पन्न होते है, अथवा षड्व निठायों में उत्पन्न होते हैं। साधु होटर भी छितने विषयस्पृही हो पाते हैं, झिर पापभॊ में रत रहने लगते हैं, वे सशराछो ही शराभानते हैं, जो/२ उनमें भेटलविहारी भी हो पाते हैं। ये अत्यन्त ठोध आदि दुर्गेशोंसे युध्त होते हैं, सुसाधु जननेता ढोंग उरते हैं, भेरे घोषोंछो छोछसभ नहीं छस लिये सर्वहा प्रयत्नशील होते हैं। ये सज्ञानप्रभा घोषसे युज्त होनेसे धर्भ भर्भज्ञ नहीं होते । विषयषायोंसे पीडित ये र्भ जांधने क्ष होते हैं, सावध- व्यापारोमें लगे रहते हैं, और ये रत्नत्रय आराधन भिना ही भोक्ष होते है मेसा उपदेश देते हैं। छनष्ठा
भी भी भोक्ष नहीं होता । ये तो संसारयम्भे ही झिरते रहते हैं।
॥ति प्रथम श ॥
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श्री मायासंग सूत्र : 3
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