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अनु. विषय
जायारांग सूत्र 3 डे पश्र्चम अध्ययन डी
विषयानुभशा
प्रथम उद्देश
१ यतुर्थ अध्ययन साथ प्रश्र्चम अध्ययन सम्जन्धप्रतिपाघ्न
२ प्रश्र्चम अध्ययन छ उशों में वर्शित विषयोंा सूयन
3 प्रथम सूत्र
अवतर
४ प्रथम सूत्र और उसी छाया
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सिलोङमें तिने मनुष्य, प्रयोभ्न अथवा विना प्रयोभन यस-स्थवार भुवों डी हिंसा डरते हैं, वे दुर्गतिभागी होते हैं। वे अति तीव्र शहाहिविषयों डी अभिलाषा के प्रारएा छन यस-स्थावर भवों डी हिंसा डरते हैं और इसके इस स्वरूप उन्हें उन्म-भरारा डे हु:जों से छुटकारा नहीं मिलता, जत जेव विषयों डे सुजोंसे उन्हें तृप्ति भी नहीं होती । और भे अपूर्व डा से ग्रन्थि भिन्न र थुड़े है वे न भोंडे जीयमें हैं और न जाहर ही ; अथवा भिन्होंने यारित्र डा लाल डर लिया है वे न तो उर्भ या संसार से मध्य में ह और न जाहर; अथवावा-अर्थ३प से द्वादृशांग उपदेश तीर्थंडर लगवान न संसार से मध्य में है न उस जाहर ही ।
६ द्वितीय सूत्र डा अवतरा, द्वितीय सूत्र और छाया ७ सभ्यत्व के प्रभाव से संसार डी असारता समनेवाले
पाना नं.
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भव्य भुव अपने भवन हो वायुप्रऽम्पित हुशाग्रस्थित जिन् हे समान समझते हैं, उसी प्रकार वे जालभवों भुवनो ली अतियश्र्चत समझते है । जालभव दूर शेरते रहते है, वे उनके हुष्परिणामो नहीं सम हैं और उन्मभरा हे थडर से डली ली छुटकारा नहीं पाते ।
८ तृतीय सूत्र डा अवतरएा । ८ तृतीय सूत्र और छाया ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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