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१६ छस भनुषयलोऽमें छितने श्रभाग घ्रामा-सभी प्राशी,
सभी भूत, सभी भाव और सभी सत्त्व हनन नेयोग्य है, हनन उरने डे लिये आज्ञा हेनेयोग्य है, हनन हरनेडे लिये ग्रहारने योग्य हैं और विषशस्त्राद्विारा भारने योग्य है; इसमें छोछ घोष नहीं हैं छस अठार हते हैं। यह सम सनार्थवयन ही है।
उ०७ १७ नवभ सूत्रछा अवतररा और नवम सूत्र ।
उ०८ १८ सभी प्राशी, सभी भूत-आधि हनन हरने योग्य है,
छत्यादि छोछ श्रभरा-भ्रामा उहते हैं, उनका यह
ज्थन अनार्यवयन है उस प्रहार आर्योठा ज्थन है। १८ शभ सूत्रछा अवतरा और शभ सूत्र ।
उ०८ २० सभी प्राणी, सभी भूत आहि हनन हरनेयोग्य नहीं है
छत्याज्थिन आर्योटा है उस प्रकार स्वद्धिान्तप्रतिपाहन। उ०८ २१ ग्यारहवें सूत्रमा अवतरश और ग्यारहवां सूत्र।
उ१० २२ :म से अपने लिये अप्रिय है उसी प्रहार वह सभी प्रासी, भूत-आहि लिये भी अप्रिय है। अतः डिसीठो म नहीं हेना याहिये । देशसभाप्ति ।
उ०८
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॥ति द्वितीयोटेशः॥
॥अथ तृतीयोटेशः॥
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१ द्वितीय शठे साथ तृतीय शठा सम्मन्धप्रतिपाहन,
प्रथम सूचना अवतरराश और प्रथभ सूत्र। २ धर्भसे वहिर्भूत लोगोंडी अपेक्षा इरो, मेसे लोगोंडी उपेक्षा
उरनेवाला मनुष्य ही विद्धान है। 3 द्वितीय सूत्रछा अवतरा और द्वितीय सूत्र । ४ विद्धान भनुष्य भनोवाटायडे सावधव्यापार३५ एडे त्यागी होते हैं, अष्टविध उभो त्यागी होते हैं, उनछे शरीर शोभा संस्कार आहिसे रहित होते हैं, सतमेव वे सरल होते हैं मेवं आरम्भनित हों अभिज्ञ होते हैं। विद्धानछे छस स्व३पठो सभ्यत्त्वहर्शी-डेवलीने उहा है। ५ तृतीय सूत्र हा अवतरश और तृतीय सूत्र ।
उ१३ ૩૧પ
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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