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________________ ४ भेास्त्रव हैं वे परिस्त्रव हैं भे परिस्त्रव हैं वे सास्त्रव हैं, भेजनास्त्रव हैं वे अपरिस्त्रव हैं भे अपरिस्त्रव हैं वे अनास्त्रव हैं - न पोंडो भनता हुआ जेसा जैन मुनि हैं भे षड्भवनिप्रायो जँधते हुये और मुफ्त होते हु भिनागभानुसार भन डर, तथा सभी तीर्थंडररो द्वारा भिन्न - लिन्न३प से प्रतिजोधित जन्धद्वारा और निर्भराजारा डोभनपुर धर्मायरा प्रवृत न हो ! 4 तृतीय सूत्रा अवता और तृतीय सूत्र । प्रवयनज्ञान से युक्त मुनि, हेयोपाहेयो तथा यथोपरिष्ट धर्म हो भननेवाले संसारियों ने लिये उपदेश देते हैं । ज्ञानीा उपदेश सुनडर, आर्त्त अथवा प्रभत्त ली प्रजुद्ध होते है । मैंने छ उहा है और मैं ने कुछ एहता हूँ वह सत्य ही हैं। मैंने यह सज लगवान् से सुनर ही उहा है । मोक्षालिताषी इसमें सभ्यत्त्व-श्रद्धान रजना याहिये । ७ यतुर्थ सूत्रा अवतरा और यतुर्थ सूत्र । ८ संसारी भव मृत्युसे नहीं जय सते । वे धर्मसे जहिर्भूत होने जरा रिछाडे अधीन रहते हैं, अति-असंयमी होते हैं, डाल-मृत्युसे गृहीत होते हैं, अथवा - आगामी वर्षमें या उसके जा के वर्षो में धर्मायरा डरनेडे संडल्य डरते रहते हैं, और धान्याहि संग्रह डरने में ही लगे रहते हैं; जेसे संसारी भुव अनन्तवार येडेन्द्रियाहि लवों में न्म लेते रहते हैं । ← प्रश्र्चम सूत्रा अवतरा और प्रश्र्चभ सूत्र । १० सिलोङमें तिने भुवोंडो वारंवार उत्पन्न होने के द्वारा उन से परियय हो भता है, नराहि स्थानों में उत्पन्न हुने वे भव नराहि सम्जन्धी हुःजों का अनुभव डरते हैं । ११ छठे सूत्रा अवतरा और छठा सूत्र । १२ डूरर्म प्ररनेवाला व जहुतडा तड नरमें रहता है और डूर नहीं डरनेवाला व ली ली नर में नहीं भता है । १३ सातवाँ सूत्रठा अवतरा और सातवाँ सूत्र । १४ यतुर्दृशपूर्वधारी और डेवलज्ञानीडे प्रथनमें थोडासा ली अन्तर नहीं होता ! १५ अष्टभ सूत्रडा अवतरा और अष्टभ सूत्र । શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ ३०० ३०१ ३०१ 303 303 उ०प 304 उ०प उ०प ३०६ ३०६ ३०७ २२
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
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