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________________ ૨૯૪ ર૯૪ ૨૯૪ २७ आठवें सूत्रछा सवतरा और आठवां सूत्र। २८ घस सभ्यत्त्वछो से मैंने उहा है उसे तीर्थंटरोंने हेजा है, गाधरोंने सुना है, लघुर्भा भव्यछवोंने भाना है; ज्ञानावरशीय डे क्षयोपशमसे भव्यभवोंने मना है। २८ नवभ सूयमा सवतररा और नवम सूत्र।। उ० पिनवयनमें श्रद्धा३य सभ्यत्त्व समावसे मातापिता आहिले साथ सांसारिसंसन्ध रजता हुआ, भृत्युद्धारा उनसे वियुज्त होता हुमा, या शाहि विषयोंमें आसहित उता हुआ भनुष्य सेठेन्द्रियाछि भवों में भटता रहता है। ३१ शभ सूठा अवतरा और शभ सूत्र । उ२ हिन-रात भोक्षप्राप्तिछे लिये उधोगयुत और सर्वहा उतरोतर प्रवर्द्धभान हेयोपाध्यविवेधरिशाभसे युज्त होते हमे तुभ प्रभत्तों छो-असंयतोंछो आर्हत धर्भसे अहिभूत सभओ; और पश्यविध प्रभाटोंसे रहित हो भोक्षप्राप्तिके लिये अविछिन्न प्रयत्न उरो, अथवा-अष्टविध शत्रुओंछो छातने लिये पराभ रो । देशसभाप्ति। ૨૯૪ ર૯પ ૨૯૫ ॥छति प्रथभोटेशः॥ ॥अथ द्वितीयोटेशः॥ १ प्रथम शिळे साथ द्वितीय वैशष्ठा संबन्ध-प्रतिघाहन; प्रथम सूचठा अवता और प्रथम सूत्र । ર૯૬ २ मास्त्रव-र्भसन्धछे धारा हैं वे परिस्त्रव - निर्थरा उडारा होते हैं, और से परित्रव - उर्भनिराधाराश है वे भास्त्रव - र्भसन्ध द्वारा हो जाते हैं। अनास्त्रव -निर्थ राहार व्रतविशेष हैं वे अपरिस्त्रव - धर्भमन्धडे जारा हो जाते हैं, ले सपरिस्त्रव - अन्धधारा है वे सनास्त्रव - उर्भनिराहार व्रतविशेष हो जाते हैं। ૨૯૭ 3 द्वितीय सूत्र। उ०० શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ २१
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
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