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________________ ૩૧૬ ૩૧૬ ૩૧૭ ૩૧૯ ૩૨૦ ૩૨૦ ૩૨૦ ६ सभ्यत्त्वही भुनि-सर्वज्ञ, यथावस्थित अर्थछो प्रतियोधित रनेवाले तथा अष्टविध होठो दूर रनेमें दुशल होते हुसे सभी प्रठारसे होठो जनरज्ञ और प्रत्याज्यान३प हो प्रहारठी परिज्ञाप्छो जाते हैं। ७ यतुर्थ सूचछा सवतररा और यतुर्थ सूत्र। ८ छस भनुष्यलोऽमें माहत मागभा श्रवाया, भनन और सभाराधन रनेवाला, हेयोपाध्यछे विवेऽमें निपुरा, रागद्वेषरहित भनुष्य मात्भाछो स्वंटन-धन-शरीराहिसे भिन्न सभमर शरीर में आस्था न रजे । ८ पश्चभ सूत्र। १० तपस्या-आहिलेद्वारा शरीरा शोषरा रे, शरीरछो जना है। ११ छठे सूत्रछा अवतरा और छठा सूत्र। १२ से अग्नि ठाष्ठोंठो भस्म र डालती है उसी प्रहार मात्मा के शुभ परिशाभ सम्यग्दर्शनाहिमें सावधान और शम्घाटि विषयों में रागरहित भनुष्य ज्ञानावरशीयादि अष्टविध होठो भस्म कर डालता है। १३ सातवें सूया अवतररा और सातवां सूत्र । १४ भुनि छस भनुष्यलोज्छो परिभित आयुवाला नहर प्रशभ गुठी वृद्धि र शोधाहिउषायोंडा त्याग डरे । १५ माठवां सूत्र। १६ हे मुनि ! जोधाविश त्रि -त्रियोगसे प्रागातिधात नेसे से प्राशियोंठोस होता है, या छोधाहिसे प्रवलित भनवाले अवठो से भानसिहज होता है उसको सभो, और जोधनित भविपासे भविषयासमें ओम होता है उसे भी सभओ । मेसे लोधी व्यन्ति भविष्यकालमें नरनिगोहाहिलवसंन्धी दुःोंठो लोगते हैं। मागभडे लयसे हांपते हुने छवोंठो तुभ घ्याष्टिसे हेमो। १७ नवभ सूत्रमा अवतरश और नवम सूत्र । १८ को भगवान तीर्थरडे उपदेशों श्रद्धायुज्त है, और उनडे उपदेश छो धारा उरने जारा लोधाछिपाय३घ म?ि प्रशान्त हो जानेसे शीतीभूत हो गये हैं, सतमेव ने पाठोठे विषयमें निघानरहित हैं, वे ही मोक्षसुजडे भागी हे गये हैं। ૩૨૧ ૩૨૧ ૩૨૨ ૩૨૨ ૩ર૩ ૩૨૩ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ २४
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
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