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१० पाँचवें सूत्रमा अवतरा और पाँयवाँ सूत्र । ११ रा और मृत्युठे वशमें पड़ा हुआ भुनुष्य सर्वघा भूढ अना
रहता है, उसलिये वह श्रुतयारित्र धर्भ हो नहीं जानता है। १२ छठेसूत्रठा अवतराश और छठा सूत्र । १३ आत्महत्याशार्थी भनुष्य मातुर प्राशियों को हेअर,
सधभत्त हो, संयभाराधनमें तत्पर रहे-छस प्रहार
संयभाराधनमें तत्पर रहने लिये शिष्यठो माज्ञा हेना। १४ सप्तम सूत्र। १५ यह संसारपरिभाषःम सावधष्टिया अनुष्ठानसे
होता है, मेसा नहर आत्महत्याराडे लिये सभ्युधत रहो छस प्रहार शिष्य प्रति ज्थन । भायी और प्रभाही वारंवार नरहाध्यिातनाठो प्राप्त उरता है। पु३ष शम्घाहि विषयोंमें रागद्वेषरहित होता है, भाया मेवं प्रभासे टूर रहता है, वारंवार भररानित अठे आने डी आशंठासे भयभीत रहता है; वह श्रुतयारित्र धर्भमें नगइ हो भरा
से छूट जाता है। १६ मष्टभ सूत्र। १७ संसारी जावोंठे दुःोंडे पाननेवाले, छाभलोग नित
प्रभाहोंसे रहित, पाप हर्मो से निवृत्त वीर पु३ष आत्भाडे
उद्धार उरने में समर्थ होते हैं १८ नवम सूत्रछा सवतरा और नवभ सूत्र । १८ शाहि विषयों में होनेवाला सावध ज्ञाता हैं वे
निरवध ठ्यिा३प संयम में होनेवालेजोंठे सहन ही उपयोगिता हो भी जाननेवाले हैं, और ओ निरवधज्यिा३५ संयभभेजों सहन डी उपयोगिता को जाननेवाले हैं वे
शाहिविषयोंमें होनेवाले सावध धर्म भी ज्ञाता है। २० दृशभ सूचठा अवता और शभ सूत्र । २१ उर्भरहित भुनिष्ठो नाराहि व्यवहार नहीं होता है; ज्यों ठि
उपाधिष्ठानधर्भ है। २२ ग्यारहवें सूया सवतररा और ग्यारहवां सूत्र । २३ धर्मठो संसारठा छारा मनहर भेडेटाराश
प्रातिपाताहिका त्याग छरे । २४ मारहवाँ सूत्र।
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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