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________________ ૨૦૬ ૨૦૬ २५ मुनिर्भस्व३प हा धर्यालोयन र सर्वज्ञ-पिन सम्मन्धी उपदेश, या संयभठो स्वीकार र रागद्वेषसे रहित हो वीतराग हो जाते है। २६ तेरहवां सूत्र । २७ उर्भधारा रागद्वेषठा ज्ञानपूर्वट परित्याग उर, संसारी लोगों जो विषयउषायों से व्याभोहित शन र, तथा विषयाभिलाष३प लोऽसंज्ञाछा वभन र भतिभान् भुनि संयभाराधनमें तत्पर रहे, संयभ ग्रह र पश्चात्ताप न छरे । देशसभाप्ति। २०७ ॥छति प्रथभोटेशः ॥ ॥अथ द्वितीयोटेशः॥ २०८ ૨૦૮ ૨૦૯ १ प्रथम श साथ द्वितीय हैश हा सम्मन्धप्रतिपाहन, और द्वितीय श ा प्रथम सूत्र । २ प्राशियों उपन्भवृद्धिष्ठा विचार रो; सभी प्राशियों छो सुजप्रिय होता है और दुःज अप्रिय होता है - स वस्तु छो सभओ। छस भ्रष्ठार विचार रनेवाला प्राशी अतिविध हो उर - निर्वाशपया वहां तऽ पहुंथानेवाले सभ्यग्दर्शन आदि परभ है मेसा मन हर घरभार्थी अनर सावध धर्भ नहीं उरता। उ द्वितीय सूत्र। ૪ ઇસ મનુષ્યલોકમેં બન્શન કે કારણભૂત મનુષ્યોં કે સાથ કે सम्बन्धों को छोडो । आरम्नवी मनुष्य मेहि-पारलौEि :जोंछो भोगनेवाले होते है। जाभभोगों में अभिलाषा रजनेवाले व अष्टविध धर्मो डा संयय पुरते रहते हैं और छाभभोगाहिन्य भर से संस्तिष्ट हो वारंवार गर्भगाभी होते हैं। ५ तृतीय सूत्र। ६ अज्ञ भनुष्य भनोविनोहडे निमित्त प्राणियोंडा संहार र आनंह भानता है । आलों-अज्ञों हा संग व्यर्थ है । उनडे संग से तो द्वेषष्ठी ही वृद्धि होती है। ૨૦૯ ૨૧૦ ૨૧૦ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨ ૧૩
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
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