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२४ द्वितीय अध्ययन छी टीडाडा उपसंहार ।
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॥छति द्वितीयाध्ययनम् ॥
॥ अथ तृतीयाध्ययनम्॥ ॥अथ प्रथभोटेशः॥
१ द्वितीयाध्ययन साथ तृतीय अध्ययना
सम्मन्धप्रतिपाहन, यारों देशों छे विषयों डा संक्षिप्त वर्शन। २ प्रथभ सूया अवता और प्रथम सूत्र । उ समुनि सर्वघा सोते रहते हैं, और मुनि सर्वघा जगते रहते
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४ द्वितीय सूत्रठा अवता और द्वितीय सूत्र । ५ जन प्रातिपाताहिधर्भ सहित लिये होते हैं;
छसलिये प्रामातिपाताहि से विरत रहना याहिये। ६ तृतीय सूयमा अवतरा और तृतीय सूत्र । ७ से शम्घाटि विषयों में रागद्वेषरहित है-मेसा ही प्राशी
आत्भवान्, ज्ञानवान्, व्रतवान, धर्भवान् और ब्रह्मवान् होता है । मेसा ही प्राशी षड्वनिष्ठायस्व३घ लोष्ठे परिज्ञानसे युज्त होता है। वही मुनि छहलाता है। वही धर्भवित् और ऋ है, मेवं वही आवर्त और स्त्रोत
संबन्धठो मानता है। ८ यतुर्थ सूत्रमा अवतरा और यतुर्थ सूत्र ।
आवर्त और स्त्रोत सम्बन्ध भननेवाला भुनि साह्य और आल्यन्तर ग्रन्थिसे रहित, अनुल और प्रतिल परीषहों को सहन हरनेवाले, संयभ विषय सरति और शम्घाटि विषय रति छी उपेक्षा उरनेवाले होते हैं, और वे परिषठों छी प३षता जो पीडाहार नहीं सभमते हैं। वे सर्वघा श्रुतयारिय३प धर्म में भाग३ रहते हैं, दूसरों का अपहार नहीं डरना याहते हैं। वे वीर अर्थात् र्भविद्यार रने में समर्थ होते हैं। छस प्रहारछे मुनिःम जारभूत उर्भोसे भुत हो जाते हैं।
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શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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