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१४ सातवें सूत्रा अवतरा और सातवां सूत्र ।
१५ हुर्वसु मुनि भगवान्डी आज्ञाा विराध हो र तुच्छता जेवं ग्लानिजे प्राप्त डरता है, और लगवाडी आज्ञा आराधS सुवसु मुनि तुच्छता जेवं ग्लानि हो नहीं पाते हैं और तीर्थंकर गएाधर आहि से प्रशंसित होते हैं । यह सुवसु मुनि लोडसंयोग से रहित हो मुक्तिगाभी होते हैं । १६ आठवें . सूत्रा अवतरा और आठवाँ सूत्र । १७ शारीर - मानसिङ हुः न प्रर्भोडा हां सि प्रकार से जन्ध होता है, भोक्ष होता है, और विपा होता है । उन सजों डा तीर्थंडर गएाधर साहिने प्र३पाडिया है। डुशल मुनि जन्ध और मोक्ष के उपायों को सर्वा समझते है । उन जन्ध और मोक्ष उपायों हो भन डर भव्य आास्त्रवद्वारों से दूर रहे। भे मुनि अन्य दर्शनों में श्रद्धान नहीं रजते हैंभे मुनि जनन्यर्शी होते है - वे जनन्याराम होते हैं और भे जनन्याराभ होते हैं वे जनन्यर्शी होते हैं। डुशल भुना उपदेश 'पुएयात्मा और 'तुच्छात्भा दोनों से लिये जराजर होता है । जेसे मुनिश उपदेश द्रव्य, क्षेत्र, SICT और लावडे अनुसार ही होता है ।
१८ नवभ सूत्र डा अवतरा और नवभ सूत्र ।
१८ धर्मोपदेश श्रोताडी परीक्षा डर धर्मोपदेश डरे । जेसा धर्मोपदेश ही प्रशंसित होता है। यह मुनि अष्टविधर्मपाशसे जद्ध भवों से छुडाता है, सभी हिशाओं में सर्वपरिज्ञायारी होता है और हिंसाहि स्थानों से लिप्त नहीं होता है । र्भो नाशडरने में हुशल, जन्धप्रभोक्षान्वेषीरत्नत्रय डा अन्वेषएाशीलवह मुनि न जद्ध है न भुत है । २० दृशभ सूत्रा अवतरा और दृशभ सूत्र । २१ तीर्थंडर, सामान्य ठेवली और रत्नत्रयुक्त साधुओं ने भैसा खाया प्रिया है वैसा ही खाया दूसरे साधु रे, तीर्थं राहिोंने भिस जायराडो प्रतिषिद्ध माना है उस जायरा से दूर रहें ।
२२ ग्यारहवें सूत्रा अवतरा और ग्यारहवां सूत्र । २३ पश्य-तीर्थंडर गएराधराहिङ नराहिगतिडे लागी नहीं होते, जात- अज्ञानी तो निरन्तर होते रहते हैं । उशसभाप्ति । द्वितीयाध्ययनसभाप्ति ।
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
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