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________________ ॥अथ षष्ठोटेशः॥ W ૧૬૭ १ प्रश्चभ शिष्ठे साथ षष्ठ शठा सम्मन्धप्रतिपाहन । ૧૬૭ २ प्रथम सूचठा अवता और प्रथम सूत्र । १६७ 3 पवनिहाय उपधाता उपदेश नहीं हेनेवाले सनगार उभी भी पापायरा नहीं उरते । ४ द्वितीय सूत्र छा अवता और द्वितीय सूत्र । ૧૬૮ ५ छावनिहायों या छ व्रतों में से डिसी मेडी विराधना रता है वह छहों डी विराधना उरता है । सुजार्थी व वायाल होता है, और अपने जसे भूढ हो वह सुज डेसले दुःज ही पाता है। वह अपने विप्रभासे अपने व्रतों छो विपरीत प्रष्ठार से ता है, अथवा वह अपने संसारछो जढाता है, या सेडेन्द्रियाधि अवस्था को प्राप्त उरता है । इसलिये याहिये डिप्राशियों को मिनसे दुःज हो मेसेजनों छा आयरा नहीं छरे । छस प्रहार हे धर्मो डे मनायरश से धर्मोपशान्ति होती है। ૧૬૮ ६ तृतीय सूचठा अवता और तृतीय सूत्र । ૧૭ર ७ भभत्वमुद्धि से रहित हो भनुष्य रत्नत्रयुज्त अनगार होते ૧૭૨ ८ यतुर्थ सूत्रछा अवतररारा और यतुर्थ सूत्र । ८ भेधावी भुनि भभत्वमुद्धिछो छोऽर, लोस्व३प डोनर आहाराहिभूरा३प संज्ञा से रहित हो संयभानुष्ठान में । पराम्भ रे। ૧૭૩ १० प्रश्वभ सूचठा अवतररा और प्रश्वभ सूत्र। १७४ ११ विघारा उरने में समर्थ, पुलवाहिलो त्यागनेवाले वीर यारित्रविषयमरति और शाहिविषय रतिको टूर रहते है; ज्यों डिवे मनासत होते हैं; मत सेव वे शम्हाधिविषयों में रागयुत नहीं होते । १२ छठे सूत्रठा भवता और छठा सूत्र । ૧૭પ १३ मुनि छष्टानिष्ट शम्घाटि विषयों में रागद्वेष न उरता हुआ ससंयभवन सम्वन्धी प्रभाछोटूर रे, भौन ग्रहार र्भक्षपारा रे । सभ्यत्वही वीर भुनि प्रान्त और ३क्ष सन्न सेवन उरते हैं। प्रान्त-३क्ष सन्म सेवन उरनेवाले भुनि छर्भा विनाश र सोधन्तर, तीर्श और भुत होते है। मेसे ही भुनि विरत छहलाते हैं। १७५ १७3 १७४ શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૨
SR No.006402
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 02 Sthanakvasi Gujarati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1957
Total Pages344
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size13 MB
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