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________________ तत्त्वार्थसूत्रे तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे जम्बूद्वीपे भरतादि सप्तक्षेत्रविभाजकानां क्षुद्रहिमवदादिषट्कुलपर्वतानां वर्णविशेषसंस्थानपनादिषड्रहदादि स्वरूपवर्णनं कृतम्, सम्प्रति-तत्रत्य तत्तत्क्षेत्रविभाजकगङ्गादिचतुर्दशनदीनां स्वरूपं प्ररूपयितुमाह---"तत्थ गंगाइया-" इत्यादि ।। तत्र-तस्मिन् खलु पूर्वोक्तस्वरूपे जम्बूद्वीपे गंगादिकाः--गङ्गा-१ रोहिता-२ हरिता३ सीता-४ नरकान्ता-५ सुवर्णकूला-६ रक्ता-७ इत्येवमादिकाः सप्तनद्यः सस्तिः पूर्वाभिमुखवाहिन्यः पूर्वाभिमुखीभूय भरतादिक्षेत्रेषु प्रवहन्त्यः पूर्वलवणसमुद्रं प्रविशन्ति [ पत्युःकुलपुनर्गमनाय स्वात्मानमर्पयन्ति-] । सिन्ध्वादयः–सिन्धु-१ रोहितांशा-२ हरिकान्ता-३ सीतोदका-४ नारीकान्ता-५ रूपकूला-६ रक्तवत्यः-७ इत्येवमादिकास्तु सप्तनद्यः पश्चिमाभिमुखबाहिन्यः पश्चिमाभिमुखीभूय प्रवहन्त्यः पश्चिमलवणसमुद्रं प्रविशन्ति, तत्र-नदीद्वयनदीद्वयमध्ये--एकैकं क्षेत्रमवगन्तव्यम् तेन-नैकत्र सर्वासां प्रवहणप्रसङ्गः ॥ २५ ॥ तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व भरतवर्षादिक्षेत्रविभाजकक्षुद्रहिमवदादीनां स्वरूपवर्णविशेपसंस्थावा -ऽऽयामविष्कम्भावगाहपद्मदादितन्मध्यवर्तिपुष्करादीनां निरूपणं कृतम् , सम्प्रति--पद्महदादिनिर्गतगङ्गादिचतुर्दशमहानदोनां स्वरूपादिकं प्ररूपयितुमाह- "तत्थ गंगाइया सत्त नदीको पुरत्थाभिमुहवाहिणीओ, सिंधूआइया सत्त पच्चत्थाभिमुहीवाहिणीओ---" तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में जम्बूद्वीप के अन्दर भरत आदि क्षेत्रों को विभाजित करने वाले क्षुद्रहिमवन्त आदि छह कुलपर्वतों के वर्ण, संस्थान, पद्मद आदि के स्वरूप का वर्णन किया गया । अब विभिन्न क्षेत्रों को विभक्त करने वाली गंगा आदि चौदह नदियों के स्वरूप का प्ररूपण किया जाता है जिसका स्वरूप पहले कहा जा चुका, है उस जम्बूद्वीप में गंगा आदि अर्थात् (१)गंगा (२) रोहिता (३) हरिता (४) सोता (५) नरकान्ता (६) सुवर्णकूला और (७) रक्ता, ये सात नदियाँ पूर्व की ओर बहती हैं और भरत आदि क्षेत्रों में बहती हुई पूर्वलवण समुद्र में प्रवेश करती हैं (पुनः वापिस न लौटने के लिए पति-सागर-के घर में अपने आपको अर्पित करती हैं।) सिन्धु आदि अर्थात् (१) सिन्धु (२) रोहितांशा (३) हरिकान्ता (४) सीतोदा (५) नारीकान्ता (६) रूप्यकूला (७) रक्तवती, ये सात नदियाँ पश्चिम की ओर बहने वाली हैं और पश्चिम की ओर बहती हुई पश्चिम लवणसमुद्र में प्रवेश करती हैं। भरत आदि सात क्षेत्रों में से प्रत्येक क्षेत्र में दो-दो नदियाँ बहती हैं अतएव एक ही जगह सभी के बहने का कोई प्रसंग नहीं हैं ॥२५॥ तत्वार्थनियुक्ति-इससे पहले भारतवर्ष आदि क्षेत्रों को पृथक्-पृथक् करने वाले क्षुद्रहिमवन्त आदि पर्वतों के स्वरूप, वर्ण आकार, आयाम, विष्कंभ, अवगाह आदि का, उनके ऊपर बने हुए पद्महद आदि का तथा पमहूद आदि के मध्य में स्थित कमलों आदि का वर्णन किया गया શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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