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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ५ सू. २४ वर्षधरपवतानां वर्णादिनिरूपणम् ६४५ तेषु प्रासादेषु निवासिन्य षड्देव्यः श्रीः ही धृति - कीर्ति बुद्धि - लक्ष्मीनामधेयाः पल्योपमस्थितिकाः ससामानिकाः सपरिषदश्च ता विलसन्ति तेषां पुष्काराणां परिवारपुष्करेषु प्रासादानामुपरि सामानिका परिषदश्च तासां वसन्ति । उक्तञ्च स्थानाङ्गे ६- स्थाने - " तत्थ णं छ देवयाओ महड्डियाओ जाव पलिओपहियाओ परिवति तं जहा - सिरी-हिरी - धिई कित्ती बुद्धी लच्छी-" इति । यावत् पदेन - महाद्युतिकाः महाबलाः महायशसः इत्यादिग्राह्यम् । तत्र - श्रीहीनृतयस्तिस्रोदेव्यः स्व-स्वपरिवारपरिवृताः सौधर्मेन्द्रेण संबद्धाः सन्ति, अतएव तास्तिस्रो देव्यः सौधर्मेन्द्र सेवापरायणा वर्तन्ते कीर्ति - बुद्धि - लक्ष्म्यस्तिस्रः खलु देव्यस्तु - सपरिवारा ईशानेन्द्रेण सम्बद्धाः सन्ति तस्मात्ताः तिस्र ईशानेन्द्रस्य सेवातत्परा वर्तन्ते एवं रीत्या - पञ्चस्वपि मेरुषु ये तावत् षट् - षट् कुलपर्वताः सन्ति, तेषु सर्वेषु षट् - षड् देव्योऽवगन्तव्याः सर्वाश्च ताः देव्यस्त्रिशत्संज्ञका भवन्ति ॥ मूलसूत्रम् - "तत्थ - गंगाइया सत्तनदीओ पुरत्थाभिमुहवाहिणीओ सिंधूआइया सत्त पच्चत्थाभिमुहवाहिणीओ - " ॥ २५ ॥ छाया - " तत्र - गंङ्गादिकाः सप्त नद्यः पूर्वाभिमुखवाहिन्यः' सिन्ध्वादिकाः सप्त पश्चि माभिमुखबाहिन्यः - ” ॥२५ ॥ वाले तथा एक कोस से कुछ कम ऊँचे छह प्रासाद हैं । उन प्रासादों में छह देवियाँ निवास करती हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं-श्री, ही, धृति, कीर्ति, बुद्धि, एवं लक्ष्मी इन सब देवियों की स्थिति पल्योपम की है और वे सामानिक एवं पारिषद्यों के साथ वहाँ विलास करती हैं। उन पुष्करों के परिवाररूप अन्य पुष्करों में प्रासादों के ऊपर उन देवियों के सामानिक और पारिषद्य देव निवास करते हैं । स्थानांगसूत्र के छठे स्थान में कहा है- 'वहाँ छह महान् ऋद्धि की धारक यावत् पल्योंपम की स्थिति वालो देवियाँ रहती हैं । वे इस प्रकार हैं - श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी । ' यावत्' शब्द से महान् द्युति वाली, महायश वाली, इत्यादि ग्रहण करना चाहिए । 1 इन छह देवियों में से श्री, ह्री और धृति नामक तीन देवियाँ अपने-अपने परिवार सहित सौधर्मेन्द्र के साथ सम्बन्ध रखती हैं, अतः वे तीनों सौधर्मेन्द्र की सेवा में तत्पर रहती हैं । कीर्ति, बुद्धि, और लक्ष्मी नामक तीन देवियाँ ईशानेन्द्र से सम्बद्ध हैं, अतएव वे ईशानेन्द्र की सेवा में तत्पर रहती हैं । इस प्रकार पाँचों मेरुपर्वतों के ऊत्तर और दक्षिण में जो छह-छह कुलपर्वत हैं, उन सब पर छह-छह देवियाँ हैं । इस प्रकार सब देवियाँ मिलकर तीस होती हैं ॥२४॥ सूत्रार्थ - ' तत्थ गंगाइया' इत्यादि सूत्रार्थ सू. २५ जम्बूद्वीप में गंगा आदि सात नदियाँ पूर्व दिशा की ओर बहती हैं और सिन्धु आदि सात नदियाँ पश्चिम की ओर बहती हैं ||२५|| શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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