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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० २५ पद्महदादिनिर्गतगादिनदीनिरूपणम् ६४७ __ इत्यादि-तत्र-तस्मिन् खलु पूर्वोक्तस्वरूपे जम्बूद्वीपे गङ्गादिकाः-- गङ्गा-१ रोहिता२ हरिता-३ सीता-४ नरकान्ता-५ सुवर्णकूला-६ रक्ता-७ इत्येवं रूपा सप्तनद्यः महासरितः पूर्वाभिमुखवाहिन्यः --- पूर्वाभिमुखीभूय भरतादिक्षेत्रेषु प्रवहन्त्यः पूवेलवणसमुद्रं प्रविशन्ति सिन्ध्वादिकाः-सिन्धु रोहितांशा हरिकान्ता सीतोदा नारीकान्ता रूप्यकूला रक्तवत्यः इत्येवं भूताः सप्तनद्यस्तु-पश्चिमाभिमुखवाहिन्यः पश्चिमाभिमुखीभूय प्रवहन्यः पश्चिमलवण समुद्रं प्रविशन्ति तत्र नदीद्वयनदीद्वयमध्ये एकैकं क्षेत्रमवसेयम् तत्र पद्महदप्रभवा पूर्वतोरणद्वारनिर्गता गङ्गानदी वर्तते, तद्हृदप्रभवा पश्चिमतोरणद्वारनिर्गत सिन्धुरस्ति उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रोहितांशा नदी विद्यते महापन हूदनभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता रोहिता नदी विद्यते महापद्महदप्रभवा-उदोच्यतोरणद्वारनिर्गता खलु-हरिकान्ता नदी वर्तते । तिगिच्छदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता खलु हरिता नदी वर्तते' तिगिच्छदप्रभवा उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता सीतोदा नदी वहति केसरिहदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता सोतानदी वर्तते, केसरिहूदप्रभवा-उदीच्यतोरणद्वारनिःसृता खलु नरकान्ता नदी विद्यते पुण्डरीक हृदप्रभवा दक्षिणतोरणद्वारनिर्गता नारीकान्ता नदी प्रवहति, तद्हूदप्रभवा उदीच्यतोरणद्वारनिर्गता रूप्यकुलानदी भवति । है। अब पमहद आदि से निकली हुई गंगा आदि चौदह महा नदियों के स्वरूप आदि का प्ररूपण करने के लिए कहते हैं - जम्बूद्वीप में गंगा आदि अर्थात् (१) गंगा (२) रोहिता (३) हरिता (४) सीता (५) नरकान्ता (६) सुवर्णकूला और रक्ता, ये सात महानदियाँ पूर्व दिशा की ओर अभिमुख होकर भरत आदि क्षेत्रों में बहती हुई पूर्व लवणसमुद्र में प्रवेश करती हैं। सिन्धु आदि अर्थात् (१) सिन्धु (२) रोहितांशा (३) हरिकान्ता (४) मीतोदा (५) नारिकन्ता (६) रूप्यकूला और रक्तवती, ये सात महानदियाँ पश्चिम की ओर बहती हुई पश्चिम लवणसमुद्र में प्रवेश करती हैं। एक-एक क्षेत्र में दो-दो नदियाँ समझनी चाहिए । उनमें गंगा नदी पद्महद से उत्पन्न होती है और पूर्व तोरण द्वार से निकलती है । इसी पमहूद से निकलने वाली और पश्चिम तोरणद्वार से निकलने वाली सिन्धु नदी है इसी पनहद से उत्तरीय तोरणद्वार से रोहितांशा नदी निकलती है। रोहिता नदी महापग्रहद से उद्गत होती है और दक्षिणी तोरणद्वार से निकलती है। महापभहद से, उत्तरीय तोरणद्वार से हरिकान्ता का उद्गम होता है । हरिता नदी तिगिच्छहद से दक्षिणीतोरणद्वार से निकलती है सीतोदा नदि इसी उत्तरीय तोरणद्वार से निकलती है । सीता नामक नदी केसरी हूद से उत्पन्न होतो और दक्षिणी तोरण द्वारा से निकलती है। नरकान्ता भी केसरी हूद से निकलती है और उत्तरीय तोरणद्वार से होकर यहती है ।नारीकान्ता पुण्डरीक हृद से उद्गत होकर दक्षिणी तोरणद्वार से निकल कर बहती है । इसी हद से उद्गत होकर उतरीय तोरणद्वार से रूबकूला नदी बहती है । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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