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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० २४ वर्षधरपर्वतानां वर्णादिनिरूपणम् ६४३
उक्तञ्च-जम्बूप्रज्ञप्तौ पद्महूदाधिकारे ७३-सूत्रे-'तस्स परमहहस्स बहुमझदेसभाए एत्य महं एगे पउमे पण्णत्ते, जोयणं आयामविक्खभेणं, अद्धजोयणं-दसजोषणाइं उन्हेणं दो कोसे ऊसिए जलंताओ साइरेगाई दसजोयणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता-" इति ।
तस्य पाहदस्य बतुमध्यदेशभागे-अत्र महद् एकं पमं प्रज्ञप्तम्, योजनमायामविष्कम्भेणअर्धयोजनं बाहल्येन दशयोजनानि उद्वेधेन द्वौ क्रोशौ जलान्तात्, सातिरेकाणि दशयोजनानि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तानि, इति ।
पद्मदापेक्षया तन्मध्यवर्तिपुष्करापेक्षया च-द्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि चाऽगन्तव्यानि । तथाच-पग्रहदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तारः खलु महापद्महदः । महापद्मदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तार स्तावत्-तिगिच्छहृदः तिगिच्छहदापेक्षया द्विगुणायामविष्कम्भश्च केसरि हृदः केसरिहदापेक्षया द्विगुणायामविस्तारो पुण्डरीकहूदः । पुण्डरीकहूदापेक्षया-द्विगुणायामविस्तारः पुन-महापुण्डरीकहृदो वर्तते ।
एवंपमहदमध्यवर्तिपुष्करापेक्षया द्विगुणं पुष्करं महापमहदे वर्तते, तत्पुष्करापेक्षयां-द्विगुणं पुष्करं तिगिच्छहूदे विलसति तत्पुष्करापेक्षया-द्विगुणं पुष्करं केसरिहदे वर्तते, तत्पुष्करापेक्षया द्विगुणं पुष्करं पुण्डरीकहदे विलसति, । तथाच-पाहूदस्य योजनसहस्रायामतया-पञ्चशतयोजनविस्तारतयोत्तरत्वेन तद् द्विगुणो महापद्महदः । सहस्रयोजनायामः सहस्रयोजनविस्तारश्च भवति ।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र ७३ पाहूद के अधिकार में कहा है- उस पद्महूद के बिलकुल मध्य भाग में एक विशाल पद्म कहा गया है। वह एक योजन लम्बा-चौड़ा है, आधा योजन मोटा है और दस योजन गहरा है, जल से दो कोस ऊँचा है । उसका समग्र परिमाण कुछ अधिक दस योजन का कहा गया है ।
पद्मद का जो परिमाण कहा गया है, उसकी अपेक्षा महापद्मद का और महापाहंद की अपेक्षा ति गिच्छ हूद का परिमाण दुगुना-दुगुना है। इसी प्रकार उनमें स्थित कमलों का परिमाण भी दुगुना दुगुना है, जो परिमाण दक्षिण दिशा के इन हृदों और पुष्करों का है, वही उत्तर दिशा के हृदों और कमलों का है । जैसे तिगिच्छ के समान केसरी हद का, महापन के बराबर पुण्डरीक हूद का और पद्महूद के समान महापुण्डरीक हूद का आयाम विष्कम है। इनमें स्थित कमलों के विषय में भी ऐसा ही समझना चाहिए ।
तात्पर्य यह है कि पद्महूद के मध्य में स्थित पुष्कर की अपेक्षा महापद्महूद में स्थित पुष्कर दुगुना है, महापद्म हूद के पुष्कर की अपेक्षा तिगिच्छ हद पुष्कर दुगुना हैं। तत्पश्चात् उत्तर में केसरी हुद का पुष्कर तिगिच्छद के पुरष्कर के बराबर, पुण्डरीक हुद का पुष्कर महापन हुद के पुष्कर के बराबर और महापुण्डरी हुद का पुष्कर पद्म हद के पुष्कर बराबर है।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧