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तत्त्वार्यसूत्रे जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ ७२-सूत्रे चोक्तम् - "उमओ पासिं दोहि पउमवरवेइयाहिं दोहिम वणसंडेहि संपरिक्खित्ते-" इति । उभयोः पार्श्वयो भ्यां पद्मवरवेदिकाभ्यां द्वाभ्याञ्च वनखण्डाभ्यां संपरिक्षिप्ताः इति । तेषाञ्च षण्णां क्षुल्लहिमवदादिवर्षधरपर्वतानामुपरि जम्बूद्वीपे खलुक्रमशः षड्महाहदाः सन्ति । ते च-पन, महापन, तिगिच्छ, केसरि, पुण्डरीक, महापुण्डरीकनामानो हृदा अवगन्तव्याः ।
___तथाचोक्तं स्थानाङ्गे ६-स्थाने ---- "जंबुद्दीवे छ महदहा पण्णत्ता, तं जहापउमदहे, महापउमदहे, तिगिच्छदहे, केसरिबहे पोंडरीयद्दहे, महापोंडरीयइहे,-" इति । जम्बूद्वीपे षड्महाहदाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पद्महदः-१ महापमहदः-२ तिगिच्छदः-३ केसरिहदः-४ पुण्डरीकहूदः-५ महापुण्डरीकहूदः-६ इति ।
तत्र-प्रथमस्तावत्-पद्महूदः सहस्रयोजनायामो वर्तते, पञ्चशतयोजनविस्तारो दशयोजनावगाहश्वा-ऽवसेयः । “तथाचोक्तं जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ पद्महदाधिकारे--"तस्स बहुसमरमणिज्जस्स भूमिमागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एक्के महे पउमदहे णाम दहे पण्णते, पाइणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिण्णे एक्कं जोयणसहस्सं आयामेणं पंचजोयणसयाई, विवखं भेणं दसजोयपाइं उन्वेहेणं अच्छे-" इति । __तस्य खलु बहुसमरमणीयस्य भूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागे, अत्र खलु-एको महापद्महदो नामहृदः प्रज्ञतः, प्राचीन-प्रत्तीचीनायत:-उदीचीन-दक्षिणविस्तीर्णः एक योजनसहनमायामेन-पञ्चयोजनशतानि विष्कम्भेण, दशयोजनानि-उद्वेधेन, अच्छः इति । तस्य खल-पद्मदस्य मध्यभागेएकयोजनायामविस्तारमेकं पुष्करं नाम षनं विलसति ।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के सूत्र ७२ में कहा है-'ये पर्वत दोनों पार्थों में दो पनवर वेदिकाओं से तथा दो वनखंडों से घिरे हुए हैं ।
__उन क्षुद्रहिमवन्त आदि छहों वर्षधर पर्वतों के ऊपर क्रम से छह महाहृद हैं। उनके नाम ये है-पद्म, महापम, तिगिच्छ, केसरी, पुण्डरीक और महापुण्डरीक ।
स्थानांसूत्र के छठे स्थान में कहा है-जम्बूद्वीप में छहहूद कहे गए हैं, वे इस प्रकार हैं-पद्महूद, महापद्महूद, तिगिच्छहूद, केसरीहूद, पुण्डरीकहूद, और महापुण्डरीकहूद ।'
इनमें से पहलापद्महूद, एक हजार योजन लम्बा है, पाँच सौ योजन चौड़ा है और दस योजन गहस है।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में पमहूद के प्रकरण में कहा है-क्षुद्रहिमवान् पर्वत के समतल भाग के बीचों बीच एक विशाल पाहूदनामक हृद है। वह पूर्व पश्चिम में लम्बा है, उत्तर दक्षिण में चौड़ा है। उसकी लम्बाई एक हजार योजन की, चौड़ाई पाँच सौ योजन की और गहराई दस योजन की है । वह स्वच्छ है ।' उस पाहूद के नध्यभाग में एक योजन लम्बा और चौड़ा एक पुष्कर नामक कमल है।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧