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________________ तत्त्वार्थसूत्रे राप्रभापृथिव्यां नारकाणां जघन्येन–एकसागरोपमा स्थितिः, वालुकाप्रभायां पृथिव्यां नारकाणां जघन्येन त्रिसागरोपमा स्थितिः, पङ्कप्रभायां पृथिव्यां जघन्येन नारकाणां सप्तसागरोपमा स्थितिः, धूमप्रभायां पृथिव्यां-नारकाणां जघन्येन दशसागरोपमा स्थितिः, तमःप्रभापृथिव्यां नारकाणां जघन्येन सप्तदशसागरोपमा स्थितिः, तमस्तमःप्रभायां पृथिव्यां नारकाणां जघन्येन द्वाविंशति सागरोपमा स्थितिरवसेया । तथाचोक्तम् ---उत्तराध्ययने सूत्रे ३६-अध्ययने "सागरोवममेगंतु उक्कोसेणं वियाहिया । पढमाए जहणणेणं दसवाससहस्सिया ॥१६०॥ "तिण्णेव सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । दोच्चाए जहण्णेणं एगंतु सागरोवमं ॥१६१।। "सत्तेव सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । तइयाए जहण्णेणं तिण्णेव सागरोवमा ॥१६२।। "दस सागरोवमाऊ उक्कोसेण वियाहिया ।। चउत्थीए जहण्णेणं सत्तेव सागरोवमा ॥१६३॥ "सत्तरस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । पंचमाए जहण्णेणें दसचेव सागरोवमा ॥१६४॥ "बावीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । छट्ठीए जहण्णेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६५॥ "तेत्तीस सागराऊ उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहण्णेणं वावीसं सागरोवमा ॥१६६॥ "छाया-"सागरोपममेकन्तु-उत्कर्षेण व्याख्यातम् । प्रथमायां जघन्येन-दशवर्षसहस्रिका ॥१६॥ होती है । शर्कराप्रभा पृथ्वी में नारकों की जघन्य स्थिति एक सागरोपम की होती है । वालुका प्रभा में नारकों की जधन्य स्थिति तीन सागरोंपम की होती है। पंकप्रभा पृथ्वी में नारकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की होती है । धूमप्रभा में नारकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम की होती है । तमःप्रभा पृथ्वी में नारकों की जघन्य स्थिति सतरह सागरोपम की होती है। तमस्तमःप्रभा पृथिवी में नारकों की जधन्य स्थिति वाईस सागरोपम की समझनी चाहिए । उत्तराध्ययन सूत्र के ३६ वें अध्ययन में कहा है 'प्रथम भूमि अर्थात् रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है और जधन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है ॥१६॥ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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