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________________ दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ५ सू. १८ नारकाणामायुः परिमाणरूपास्थितेर्निरूपणम् ६१३ यथाक्रमम्–क्रममनतिक्रम्य यथाक्रमं रत्नप्रभादि पृथिवीक्रमानुसारेण दशवर्षसहस्राणि, एक सागरोपमम्, त्रिसागरोपमा, सप्तसागरोपमा, दशसागरोपमा, सप्तदशसागरोपमा, द्वाविंशसा - गरोपमा चावसेया । तत्र - रत्नप्रभा पृथिवीवर्ति नारकाणां जघन्येन दशवर्षसहस्राणि स्थितिः, शर्कराप्रभा पृथिवीवर्तिनारकाणां जघन्येनै-कसागरोपमा स्थितिः, वालुकाप्रभापृथिवोमध्यवर्ति नारकाणां जघन्येन त्रिसागरोपमा स्थितिः पङ्कप्रभा पृथिवी मध्यवर्तिनारकाणां जघन्येन सप्तसागरोपमा स्थितिः, धूमप्रभा पृथिवीमध्यवर्ति नारकाणां जघन्येन दशसागरोपमा स्थितिः, तमः प्रभा पृथिवोमध्यवर्ति नारकाणां जघन्येन सप्तदश सागरोयमा स्थितिः, तमस्तमः प्रमापृथिवीमध्यवर्तिनारकाणां जघन्येन द्वाविंशति सागरोपमा स्थितिः आयुः प्रमाणरूपा भवतीतिभावः || १८ || तत्वार्थनिर्युक्तिः---- - पूर्व नाराकाणामुत्कृष्टेन स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति - तेषां जघन्येन स्थितिं प्ररूपयितुमाह " जहणेणं नारगाणं ठिई जहाकमं दसवाससहस्सा एग-ति-सत्त- दस--सत्तरसबावीस ते तीसा सागरोवमा - " ॥ इति ॥ रत्नप्रभादिपृथिवीषु-नारकाणां जघन्येन स्थितिः आयुः प्रमाणरूपा यथाक्रमम्-कममनतिक्रम्य यथाक्रमम्, रत्नप्रभादि पृथिवीक्रमानुसारेण दशवर्षसहस्राणि, एकं सागरोपमम्, त्रिसागरोपमा, सप्तसागरोपमा, दशसागरोपमा, सप्तदशसागरोपमा द्वाविंशति सागरोपमाSवसेया ? तत्र रत्नप्रभा पृथिव्यां - नारकाणां जघन्येन दशवर्षसहस्राणि स्थिति र्भवति, शर्क - कम से कम स्थिति का प्ररूपण करने के लिए कहते हैं । रत्नप्रभा आदि भूमियों के क्रम के अनुसार उसमें रहने वाले नारको की जघन्य स्थिति इस प्रकार है- दस हजार वर्ष, एक सागरोपम तीन सागरोपम, सात सागरोपम, दस सागरोपम, सत्तरह सागरोपम और वाइस सागरोपम । रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों की जधन्य स्थिति अर्थात् आयु का प्रमाण दस हजार वर्ष का है । शर्करप्रभा पृथ्वी के नारकों को जघन्य स्थिति एक सागरोपम की है । वलुका प्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारकों को जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की है । पंकप्रभा पृथ्वी में निवास करने वाले नारक जीवों की स्थिति सात सागरोपम की है । धूमप्रभा पृथिवी के नारकों की जधन्य स्थिति दस सागरोपम की है । तमः प्रभा पृथ्वी के नारकों की जधन्य स्थिति सतरह सागरोपम की है । तमस्तमा नामक सातवीं पृथ्वी के नारकों की जधन्य स्थिति वाईस सागरोपम की है ॥ १८ ॥ तत्वार्थनियुक्ति – इससे पूर्व नारक जीवों की उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक स्थिति की प्ररूपणा की गई, अब उनकी जधन्य स्थिति कहते हैं - रत्नप्रभा आदि पृथिवियों में नारक जीवों की जघन्य स्थिति अर्थात् आयु का प्रमाण, क्रम के अनुसार इस प्रकार है-दस हजार वर्ष एक सागरोपम तीन सागरोपम, सात सागरोपम, दस सागरोपम, सतरह सागरोपम और वाईस सागरोपम । इसमें रत्नप्रभा पृथ्वी में नारकों की जधन्य स्थिति दस हजार वर्ष की શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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