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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० १८ नारकाणामायुः परिमाणरूपस्थितेनिरूपणम् ६१५
"त्रय एव सागरास्तु-उत्कृर्षेण व्याख्याताः । द्वितीयायां जघन्येन-एकन्तु सागरोपमम् ॥१६१॥ "सप्तैव सागरास्तु-उत्कर्षेण व्याख्याताः । तृतीयायां जघन्येन-तिन एव सागरोपमाः ॥१६२।। "दश सागरोपमास्तु-उत्कर्षेण व्याख्याताः । चतुर्थी जघन्येन–सप्तैव सागरोपमाः ॥१६३॥ "सप्तदश सागरास्तु-उत्कर्षेण व्याख्याताः । पञ्चम्यां जघन्येन-दशचैव सागरोपमाः ॥१६॥ "द्वाविंशतिः सागरास्तु-उत्कर्षेण व्याख्याताः । षष्ठ्यां जघन्येन-सप्तदश सागरोपमाः ॥१६५॥ "त्रयस्त्रिंशत्सागरास्तु-उत्कर्षेण व्याख्याताः ।
सप्तम्यां जघन्येन-द्वाविंशतिः सागरोपमाः ॥१६६॥ इति तथाच-नारकाणां पूर्व-पूर्व पृथिव्यां या-उत्कृष्टा स्थितिः सा परपरपृथिव्यां जघन्या स्थिति भवति, यथा- रत्नप्रभायां नारकाणा मुत्कृष्टा स्थितिः एकं सागरोपमं वर्तते । सा चैकसागरोपमा स्थितिः शर्कराप्रभायां जघन्या वर्तते नारकाणाम् ।
'दूसरी पृथ्वी अर्थात् शर्कराप्रभा में उत्कृष्ट आयु तीन सागरोपम की तथा जघन्य आयु एक सागरोपम की है ।।१६१॥
'तीसरी पृथ्वी में अर्थात् वालुकाप्रभा में उत्कृष्ट आयु सात सागरोपम की और जधन्य आयु तीन सागरोपम की है ॥१६२॥
'चौथी पृथ्वी पंक प्रभा में उत्कृष्ट आयु दस सागरोपम की है और जघन्य आयु सात सागरोपम की है ।।१६३।।
_ 'पाँचवीं धूमप्रभा पृथ्वी में उत्कृष्ट आयु सतरह सागरोपम की और जघन्य आयु दस सागरोपम की है' ॥१६४॥
छठी अर्थात् तमःप्रभा में उत्कृष्ट आयु वाईस सागरोपम की और जघन्य आयु सतरह सागरोपम की है' ॥१६५॥
_ 'सातवीं पृथ्वी तमस्तमःप्रभा में उत्कृष्ट आयु तेतीस सागरोपम की और जघन्य आयु वाईस सागरोपम की है' ॥१६६॥
सातों नरकभूमियों के नारकों की ऊपर जो उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति दिखलाई गई है, उसे ध्यानपूर्वक देखने से प्रतीत होगा कि पूर्व-पूर्व के नरक में जितनी उत्कृष्ट स्थिति है, उत्तरोत्तर में वही जघन्य बन जाती हैं। उदाहरणार्थ-रत्नप्रभा पृथ्वी में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की है, वही शर्कराप्रभा में जधन्य स्थिति है। शर्कराप्रभा में तीन
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧