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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ५ सू० ११
रत्नप्रभादिसप्तनरकभूमिनिरूपणम् ५८७
भेदेन त्रिधा भिद्यमानायास्तनुवातपर्यन्ताया रत्नप्रभा पृथिव्याः परस्परयाऽऽधारभूतमवगन्तव्यम् । सर्वञ्चैतत्-पृथिव्यादि तनुवानान्तमाकाशे प्रतिष्ठितम् । आकाशञ्च - स्वप्रतिष्ठितम् । तथा स्वाभाव्यात् तस्मादुक्तक्रमेण घनोदधि-धनवाततनुवा ताकाशप्रतिष्ठितः प्रत्येकं रत्नप्रभादि सप्तपृथिव्यो लोकस्य तथा स्वाभाव्या सन्निविष्टाः - असंख्येययोजन कोटिकोट्यो विस्तृताः सन्ति ।
तत्र - रत्नप्रभाऽऽयामविष्कम्भाभ्यामेकरज्जुप्रमाणा, शर्कराप्रभा-सार्द्धद्वयरज्जुप्रमाणा, वालुकाप्रभा च चतूरज्जुप्रमाणा, पङ्कप्रभा - पञ्चरज्जुप्रमाणा, धूमप्रभा रज्जुषट्कप्रमाणा, तमः प्रमासार्द्धषट्ज्जुप्रमाणा, तमस्तमः प्रभा - सप्तरज्जुप्रमाणा वर्तते । तासां चोत्कीर्तनं नामतो - गोत्रतश्वोभयथा भवति । तत्र - प्रथमा पृथिवीनाम्ना धर्मा, गोत्रेण च रत्नप्रभा, द्वितीया पृथिवीनाम्ना वंशा, गोत्रेण च शर्कराप्रभा तृतीया - पृथिवीनाम्ना शैला, गोत्रेण च वालुका प्रभावर्तते ।
चतुर्थी पृथवी नाम्ना अञ्जना, गोत्रेण च पङ्कप्रभा, पञ्चमी पृथिवी नाम्ना - रिष्ठा, गोत्रेण च धूमप्रभा, षष्ठी पृथिवी - नाम्ना माघव्या, गोत्रेण च तमःप्रभा, सप्तमी पृथिवी नाम्ना माघवी - गोत्रेण च तमस्तमः प्रभा इत्युच्यते ।
तत्र - रत्नप्रभा, पूर्वापरादिविभागव्यवच्छिन्ना सर्वत्र - घनभावेन वाहल्येना - ऽशीतिसहस्राधिक अब्बहुलकाण्ड इन तीनकाण्डोंवाली तनुवात पर्यन्तकी रत्न प्रभा पृथिवी का परस्पर आधारभूत है । यह पृथिवी आदि तनुवात पर्यन्त सब उस आकाश के ऊपर प्रतिष्ठित हैं । आकाश अपने स्वभाव से अपने रूपसे प्रतिष्ठित है यह किसी के आश्रयपर नहीं है । इसी कारण घनोदधि घनवात और तनुवात आकाश पर प्रतिष्ठित - रही हुई हैं । वह प्रत्येक पृथिवी असंख्यात करोडा करोडयोजनके विस्तार वाली लोकस्थिति के स्वभाव से स्थित हैं ।
अब इन सातों पृथिवियों का प्रमाण कहते हैं—
रन्नप्रभा नामकी पहली पृथिवी आयामविष्कम्भ - लम्बाई चौडाई से ऐकरज्जु प्रमाण की है १, शर्कराप्रभा ढाई रज्जुप्रमाण २, वालुकाप्रभा चार रज्जु प्रमाण ३, पङ्कप्रभा पांच रज्जुप्रमाण ४, धूमप्रभा छह रज्जु प्रमाण ५, तमः प्रभा साढे छह रज्जुप्रमाण ६, और तमस्तमः प्रभा सातवीं पृथिवी सात रज्जुप्रमाण की है ५, इनका उत्कीर्तन नाम और गोत्र दोनों प्रकार से होता है । जैसे पहली पृथिवी नाम से धर्मा और गोत्र रत्नप्रभा कहलाती है १, दूसरो पृथिवी नामसे वंशा और गोत्रसे शर्कराप्रभा २, तीसरी पृथिवी नामसे शैला और गोत्र से वालुकाप्रभा, ३ चौथी नाम से अञ्जना गोत्र से पङ्कप्रभा ४, पांचवीं नामसे रिष्टा और गोत्र से धूमप्रभा ५, छठी नाम से मघा और गोत्र से तमःप्रभा ६, और सातवीं पृथिवी नाम से माघवती और गोत्र से तमस्तमः प्रभा कहलाती है ७ ।
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इन सातों पृथिवियों में से प्रथम रत्नप्रभा पृथिवी पूर्वापर आदि सब विभागों में सर्बत्र एकसमान घन रूपसे ऊपर से नीचे तक अर्थात् पिण्डरूप से एक लाख अस्सी हजार योजन
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧