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________________ ५८६ तत्त्वार्थसूत्रे प्रभापेक्षया पङ्कप्रभा पृथुला, पङ्कप्रभापेक्षया धूमप्रभा पृथुला, धूमप्रभापेक्षया तमः प्रभा पृथुला, तमः प्रभापेक्षया तमस्तमः प्रभा पृथिवी पृथुलतराऽस्तीति भावः । एवञ्च सप्तापि पृथिव्या: घनोदधिवलय प्रतिष्ठिताः सन्ति, घनोदविवलयं - घनवातवलयप्रतिष्ठितं, घनवातवलयं - तनुवातवलय प्रतिष्ठितं, तनुजात वलयमाकाशप्रतिष्ठितं भवति । एतानिसर्वाणि वलया कारत्वेन वलयमिति प्रोक्तम् । तथा च — रत्नप्रभाया अधस्तात् योजनाऽसंख्येय कोटीरतिक्रम्य शर्कराप्रभास्ति । एवंशर्कराप्रभायाः अधो योजनकोटीनामसंख्येयकोटीर तिवाह्य वालुकाप्रभाऽस्ति । एवं रीत्याशेषाः पङ्कप्रभाद्याः पृथिव्योऽपि असंख्येययोजनकोटी कोट्यन्तराला अधोऽधोवक्तव्याः । घनप्रहणेन च प्रत्येकं पृथिव्याः अधस्तात् घनएवोदधिर्वर्तते, न तु तत्र द्रवीभूतमम्बु, वातास्तूभयथाऽपि वर्तन्ते घनाश्च तनवखेति ज्ञाप्यते । घनोदधिवलयं चाऽसंख्येययोजनसहस्रबाहल्ये घनवातवलये प्रतिष्ठितम्, घनवातवलयं चासंख्येययोजनसहस्रबाहल्ये तनुवातवलये प्रतिष्ठितम् । तनुवातवलयानन्तरं च महातमोभूतमाकाशमसंख्येययोजनकोटिकोटीप्रमाणं वर्तते, तच्चाकाशम् - अस्याः खरकाण्डपङ्कबहुलाऽब्बहुल जैसे रत्नप्रभा के नीचे शर्कप्रभा पृथिवी रत्नप्रभा की अपेक्षा चौडी है २ । एवं शर्करा - प्रभा की अपेक्षा उसके नीचे की वालुकाप्रभा पृथिवी चौडी है ३ । उसकी नीचे पङ्कप्रभा पृथिवी वालुका प्रभा पृथिवी की अपेक्षा चौड़ी है ४ । पङ्कप्रभा पृथिवी की अपेक्षा इसके नीचे की धूमप्रभा पृथिवी चौड़ी है ५ । धूमप्रभा की अपेक्षा इसके नीचे की तमः प्रभा पृथिवी चौड़ी है ६ । तमः प्रभा की अपेक्षा इसके नीचे की तमस्तमः प्रभा पृथिवी चौड़ी है। ७ ॥ इस प्रकार सातों पृथिवियां घनोदधि वलय पर प्रतिष्ठित है । घनोदधिवलय घनवातवलयपर प्रतिष्ठित है । घनवातवलय तनुवातवलयपर प्रतिष्टित है तनुवातवलय आकाश प्रतिष्ठित है । ये सब वलयाकार होने से वलय शब्द से कहे गये हैं । इन पृथिवियों का परस्पर कितना अन्तराल है बह कहते हैं - रत्नप्रभा की नीचे असंख्यात करोड योजन जाने पर शर्कराप्रभापृथिवी आती है २ शर्कराप्रभा पृथिवी के नीचे असंख्यात करोड करोड योजन जाने पर वालुकाप्रभापृथिवी आती है । इसी प्रकार से शेष पङ्कप्रभा आदि पृथिवियां भी एक एक के नीचे असंख्यात करोड करोड योजन की अन्तरालता से प्रतिष्ठित हैं । यहां घनशब्द ग्रहण करने से वह पानी घनीभूत है नहीं कि द्रवीभूत, अर्थात् वह पानी वज्र सा जमा हुआ घनरूप हैं किन्तु द्रव तरल पतला नहीं है, ऐसा समझना चाहिये । इसके नीचे का वायु दोनों प्रकार का है, पहला घन और दूसरा तनु तरल पतला है । घनोदधि असंख्यात हजार योजन की चौडाई वाले घनवात पर प्रतिष्ठित है, घनवात असंख्यात हजार योजन की चौडाई वाले तनुवात पर प्रतिष्ठित है, तनुवात के बाद असंख्यात करोड़ा करोड योजन वाला महा तमोभूत आकाश रहा हुआ है, वह आकाश खरकाण्ड, पङ्क बहुलकाण्ड, શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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