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तत्त्वार्यसूत्रे चेव, दो किन्नरिंदा पण्णत्ता, तं जहा—किन्नरेचेव किंपुरिसेचेव, दो किंपुरिसा पण्णत्ता, तं जहा--सप्पुरिसेचेव महापुरिसेचेव, दो महोरगिंदा पण्णत्ता, तंजहा--अतिकाए चेव महाकाएचेव, दो गंधविदा पण्णत्ता, तंजहा- गीतरतीचेव गीयजसेचेव--,, इति--।
द्वावसुरकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा चमरश्चैव-बलिश्चैव, द्वौ नागकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा धरणश्चैव-भूतानन्दश्चैव, द्वौ सुपर्णकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा वेणुदेवश्चैव-वेणुदालीचैव, द्वौ विद्यत्कमारेद्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा हरिश्चैव-हरिसहश्चैव, द्वावग्निकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा अग्निशिखश्चैव अग्निमाणवश्चैव, द्वौ द्वीपकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा पूर्णश्चैव-वशिष्ठश्चैव, द्वावुदधिकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा जलकान्तश्चैव-जलप्रभश्चैव,
द्वौ दिक्कुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा अमितगतिश्चैव-अमितवाहनश्चैव, द्वौ वायुकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा वेलम्बश्चैव-प्रभञ्जनश्चैव, द्वौ स्तनितकुमारेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-घोषश्चैव-महाघोषश्चैव, द्वौ पिशाचेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-कालश्चैव-महाकालश्चैव, द्वौ भूतेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-सुरूपश्चैव-प्रतिरूपश्चैव, द्वौ यक्षेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-पूर्णभद्रश्चैव-माणिभद्रश्चैव, द्वौ राक्षसेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-भीमश्चैव,महाभीमश्चैव, द्वौ किन्नरेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-किन्नरश्चैव-किम्पुरुषश्चैव, द्वौ किम्पुरुषेन्द्रौ प्रज्ञप्ती, तद्यथा-सत्पुरुषश्चैव-महापुरुषश्चैव, द्वौ महोरगेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-अतिकायश्चैव-महाकायश्चैव, द्वौ गन्धर्वेन्द्रौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा-गीतरतिश्चैव-गीतयशाश्चैव, इति. ॥ २५ ॥
मूलसूत्रम्--"ईसाणंता देवा कायपरियारणा अच्चुयंता फासरूवसहमणपरियारणा कप्पाईया अपरियारणा य-" ॥२६॥
'दो असुरकुमारेन्द्र कहे गये हैं-चमर और बलि । दो नागकुमारेन्द्र कहे गये हैंधरण और भूतानन्द । दो सुवर्णकुमारेन्द्र कहे गये हैं-वेणुदेव और वेणुदाली । दो विद्युत्कुमारेन्द्र कहे गये हैं-हरि और हरिस्सह । दो अग्निकुमारेन्द्र कहे गये हैं-अग्निशिख और अग्निमाणव । दो द्वीपकुमारेन्द्र कहे गये हैं-पूर्ण और विशिष्ट । दो उदधिकुमारेन्द्र कहे गये हैं-जलकान्त और जलप्रभ, दो दिशाकुमारेन्द्र कहे गये हैं-अमितगति और अमितवाहन । वायुकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-वेलम्ब और प्रभंजन । स्तनितकुमारों के दो इन्द्र कहे गये हैं-घोष और महाघोष।
__वानव्यन्तरों में पिशाचों के दो इन्द्र हैं-काल और महाकाल, भूतों के दो इन्द्र हैंसुरूप और प्रतिरूप, यक्षों के दो इन्द्र हैं-पूर्णभद्र और माणिभद्र, राक्षसों के दो इन्द्र हैंभीम और महाभीम, किन्नरों के दो इन्द्र हैं-किन्नर और किंपुरुष, किंपुरुषों के दो इन्द्र हैंसत्पुरुष और महापुरुष । महोरगों के दो इन्द्र हैं- अतिकाय और महाकाय, गन्धर्वो के दो इन्द्र हैं-गीतरति और गीतयश' ॥२५।।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧