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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. २५ पूर्वोक्तेषु चतुर्विधेषु कति इन्द्राः भवन्तीति निरूपणम् ५२९ पूर्णभद्रौ माणिभद्रश्च । राक्षसाणां-भीमो महाभीमश्च, भूतानां प्रतिरूपो-ऽतिरूपश्च, पिशाचानांकालो महाकालश्चेति, ज्योतिष्काणाञ्च चन्द्रसूर्यग्रहादीनां बहवश्चन्द्राः सूर्याश्चन्द्राःसन्ति । वैमानिकानां पुनःकल्पोपपन्नकानामेकैक इन्द्रो भवति- । तत्र-सौधर्मे शक्रः, ऐशाने-ईशानः, सनत्कुमारे-सनत्कुमारः, माहेन्द्र माहेन्द्रः, ब्रह्मलोके ब्रह्मा, लान्तके-लान्तकः, महाशुक्र-महाशुक्रः । सहस्रारे-सहस्रारः, द्वयोरप्यानत-प्राणतयोःप्राणतनामा-एकएवेद्रः । आरणाच्युतयोश्च द्वयोरच्युतनामा-एक एवेन्द्रो भवति । अच्युतात्परतो नवौवेयकेषु विजयादिषु पञ्चानुत्तरौपपातिकेषु चेन्द्रादयो न भवन्ति, सर्व एव ते कल्पातीताः स्वतन्त्रत्वाद् अहमिन्द्रा भवन्ति प्रायशो गमनागमनरहिताश्च-। "उक्तञ्च-स्थानाङ्गे २-स्थाने ३-उद्देशके-“दो असुरकुमारिंदा पण्णत्ता,तंजहाचमरेचेव, बलीचेव, दो नागकुमारिंदा पण्णत्ता, तंजहा-धरणे चेव भूयाणंदे चेव, दो मुवण्णकुमारिंदा पणत्ता, तंजहा--वेणुदेवेचेव वेणुदालीचेव, दो विज्जुकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा–हरिच्चेव हरिसहेचेव, दो अग्गिकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अग्गिसिहे चेवअग्गिमाणवे चेव, दो दीवकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्नेचेव विसिटेचेव, दो उदहि कुमारिंदा पण्णता, तं जहा- जलकंतेचेव-जलप्पभेचेव, दो दिसाकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा-अमियमती चेव अमियवाहणे चेव, दो वातकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा--वेलंबेचेवपभंजणेचेव, दो थणियकुमारिंदा पण्णत्ता, तं जहा--घोसेचेव महाघोसेचेव, दो पिसाअइंदा पण्णत्ता, तं जहा-काले चेव महाकाले चेव, । दो भूइंदा पण्णत्ता, तंजहा--सुरूवेचेव पडिरूवेचेव, दो जक्खिदा पण्णत्ता, तं जहा-पुन्नभद्देचेव मणिभद्दे चेव, दो रक्खसिंदा पण्णत्ता, तंजहा- -भीमेचेव महाभीमेभद्र और मणिभद्र, राक्षसों में भीम और महाभीम, भूतों में प्रतिरूप और अतिरूप तथा पिशाचों में काल और महाकाल नामक दो इन्द्र हैं। ___ ज्योतिष्कोंमें-चन्द्र, सूर्य और ग्रह आदि में चन्द्र और सूर्य नामक दो इन्द्र हैं। और सूर्य बहुत से हैं । अतः जातिवाचक दो इन्द्र हैं। कल्पोपपन्नक वैमानिकों में प्रत्येक कल्प में एक-एक इन्द्र है। सौधर्म में शक्र, ऐशान में ईशान, सनत्कुमार में सनत्कुमार, माहेन्द्र में माहेन्द्र, ब्रह्मलोक में 'ब्रह्म' लान्तक में लान्तक, महाशुक्र में महाशुक्र, सहस्रार में सहस्रार, आनत—प्राणत नामक दोनों कल्पों में एक प्राणत आरण और अच्युत कल्पों में एक अच्युत नामक इन्द्र है। अच्युतकल्प से आगे नौ अवेयकों में और पाँच अनुत्तर-विमानों में इन्द्र आदि का भेद नहीं है, वे कल्पातीत हैं । वहाँ के सभी देव स्वतन्त्र होने के कारण 'अहमिन्द्र हैं और वे प्रायः गमन-आगमन से रहित हैं-इधर-उधर आवागमन नहीं करते हैं। __ स्थानांगसूत्र के दूसरे स्थान के तीसरे उद्देशक में कहा है ६७ શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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