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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू. २४ किन्नरादिव्यन्तराणां ज्योतिष्कणां च देवनामिन्द्रादिकम् ५२३ वयस्य तुल्या भवन्ति ६। अनीकाधिपतयः सेनापतिस्थानीयाः दण्डनायकसदृशाः, अनीकानि--- तावद् हस्ति, घोटक, रथ, पदातिवाहनस्वरूपाणि-७) प्रकीर्णकाः-पौरजानपदतुल्याः, प्रजासदृशा इत्यर्थः-८। आभियोगिका:-मृत्यस्थानीयाः, आभिमुख्येन योगोऽभियोगः अन्याराधनेच्छयाऽभिमुखीकृतकर्मविशेषस्तमहन्तीति-आभियोगिका दाससदृशाः-९। किल्बिषिका-किल्बिषं पापं चरन्तीति किल्बिषिकाः-चाण्डालादिस्थानीयाः भवन्ति-१० ॥सूत्र २३।।। मूलसूत्रम् - "वाणमंतरजोइसियाणं इंदसामाणियपरिसाआयरक्खगणियाहिवइणोपंच भवणपईणं सत्त । कप्पाईया य अहमिंदा" ॥सूत्र २४॥ छाया--"वानव्यन्तरज्योतिष्काणाम् इन्द्र १ सामानिक २, पारिषद ३, आत्मर क्षक-४ अनीकाधिपतयः पञ्च भवनपतीनां सप्त कल्पातीताश्च अहमिन्द्राः" ॥सूत्र २४॥ तत्वार्थदीपिका--- पूर्वसूत्रे द्वादशवैमानिकानां देवानामिन्द्रादयो दशदशाऽऽज्ञैश्चर्यभोगोपभोगादिसम्पादकतया प्ररूपिताः । सम्प्रति वानव्यन्तरज्योतिष्काणां देवानामिन्द्रादयः पञ्च भवन्तीति, कल्पातीतानाञ्च नव ग्रैवेयकपञ्चानुत्तरौपपातिकदेवानाम् ----अहमिन्द्रत्वं भवतीति च प्ररूपयितु माह "वाणमंतरजोइमियाणं इंदसामाणियपरिसोबवण्णगआयरक्खअणियाहिवइणो पंच भवणवईणं सत्त कप्पाईया य अहमिंदा"-इति । (७) अनीकाधिती- सेनापति या दण्डनायक के समान । सेनाएँ अनेक प्रकारकी होती हैंगजसेना, अश्वसेना, रथसेना, पदातिसेना आदि । (८) प्रकीर्णक- जनता(प्रजा)के समान । आभियोगिक- भृत्यों-दासों के समान, जो दूसरों का काम करने को तत्पर रहें । (१०)किल्बिषिक-किल्बिष का अर्थ है पाप । जो देव चाण्डालों – समान घृणित समझे जाते हैं, वे किल्विषिक कहलाते हैं । सू. ॥२३॥ सूत्रार्थ--'वाणमंतरजोइसियाणं इंद' इत्यादि सूत्र २४ ॥ वानव्यन्तर और ज्योतिष्कों में (१) इन्द्र (२) सामानिक (३) पारिषदुपपन्नक (४) आत्मरक्षक (५) अनीकाधिपति ये पाँच देव होते हैं कल्पातीत देव सब अहमिन्द्र होते हैं ॥२४॥ तत्त्वार्थदीपिका--पूर्वसूत्र में बारह कल्पोपपन्न वैमानिक देवों के इन्द्र आदि दस-दस भेद, आज्ञा, ऐश्वर्य, भोग उपभोग आदि के सम्पादक रूप में प्रतिपादन किये गये हैं। अब यह बतलाते हैं कि वानव्यन्तरों और ज्योतिष्कों में इन्द्रादि पाँच होते हैं नौ ग्रैवेयक देव और पाँच अनुत्तरौपपातिक देव सभी अहमिन्द्र होते हैं। उनमें इन्द्र आदि का कोई भेद नहीं होता। वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में ये पाँच पाँच भेद वाले देव होते हैं (१) इन्द्र (२) सामानिक (३) पारिषद (४) आत्मरक्षक (५) अनीकाधिपति कल्पातीत देव अहमिन्द्र होते हैं । किन्नर किम्पुरुष आदि आठ वानव्यन्तरों तथा चन्द्र सूर्य आदि पाँच ज्योतिष्कों में (१) इन्द्र (२) सामानिक (३) पारिषदुपपन्नक (४) आत्मरक्षक (५) अनीकाधिपति (६) प्रकीर्णक (७) आभियोमिक और (८) किल्विषि ये आठ मेद होते है । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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