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तत्त्वार्थसूत्रे
वानव्यन्तरज्योतिष्काणाम्-किन्नरकिम्पुरुषाद्यष्टविधवानव्यन्तराणां चन्द्रसूर्यप्रभृतिपञ्चज्योतिष्काणाञ्च देवानां-इन्द्र-१ सामानिक २, पारिषदुपपन्नका -३ ऽऽत्मरक्षका-४ऽनीकाधिपतयः पञ्च तावद् आज्ञैश्वर्यभोगोपभोगादिविधायकाः सन्ति । भवनपतीनामिन्द्रसामानिकादयः सप्तदेवा तत्तदिन्द्राणामाज्ञैश्वर्यभोगोपभोगादिविधायका सन्ति किन्तु-कल्पातीताश्च नवग्रैवेयकपञ्चानुत्तरौपपातिकाः अहमिन्द्रा भवन्ति, अहमिन्द्राः स्वस्य स्वयमेवा-ऽऽज्ञैश्वर्यस्वामित्वभर्तृत्वपोषकत्वादिविधायका भवन्ति । इत्येव तेषामहमिन्द्रत्वमवसेयम् ।।सूत्र-२४॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्व तावद् सौधर्मेशानादिद्वादशवैमानिकदेवानामाज्ञैश्चर्यभोगोपभोगादि विधायकतया-इन्द्रादयो दश–दशदेवाः प्रत्येकं प्रतिपादिताः-सम्प्रति-किन्नरादिवानव्यन्तराणां चन्द्रसूर्यादिज्योतिष्काणाञ्च देवानां इन्द्रादयः पञ्च-पञ्च भवन्ति, कल्पातीतानां चेन्द्रादयो न भवन्तीति प्रतिपादयितुमाह
___ "वाणमंतरजोइसियाणं"-इत्यादि । वान-व्यन्तरज्योतिष्काणाम, किन्नर-किम्पुरुषाधष्टविधवानव्यन्तराणाम्-चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रतारापञ्चकज्योतिष्काणां देवानाम् इन्द्र-सामानिकादयः प्रत्येकं पञ्च-पञ्च-आज्ञैश्वर्यभोगोपभोगादिविधायका भवन्ति ।
तेषां वानव्यन्तराणां ज्योतिष्काणाञ्चेन्द्रास्तावत् चतुर्णा सामानिकादीनामधिपतयः परमैश्वर्यसम्पन्ना भवन्ति १, सामानिकाः पुनरिन्द्रस्य समानस्थाने भवाः सामानिकाः आयुष्कवीर्यपरिवार-भोगो-पभोगादि-भिरिन्द्रतुल्या भवन्ति । ते खलु सामानिका महत्तरा आमात्य
कल्पातीत देव अर्थात् नव ग्रैवेयक तथा पाँच अनुत्तरौपपातिक अहमिन्द्र होते हैं। उनमें शास्य-शासकभाव नहीं है, स्वामी सेवक का भेद नहीं है, वे स्वयं ही अपने स्वामी, भर्ता या पोषक हैं। वे किसी की आज्ञा में नहीं होते, किसी के ऐश्वर्य के विध यक नहीं होते । इस कारण उन्हें अहमिन्द्र कहते हैं ॥२४॥
तत्त्वार्थनियुक्ति—पहले सौधर्म ईशान आदि बारह प्रकार के वैमानिकों के अज्ञाऐश्वर्यभोग उपभोग के विधायक रूप से इन्द्र आदि दस-दस भेद प्रतिपादन किये गये अब किन्नर आदि वानव्यन्तरों और चन्द्र-सूर्य आदि पाँच ज्योतिष्कों में इन्द्रादि देवों के भेद बतलाते हैं । यहां इन्द्र आदि पांच भेद वाले देव होते हैं
किन्नर किम्पुरुष आदि आठ प्रकार के वानव्यन्तरों में तथा चन्द्र-सूर्य ग्रह नक्षत्र और तारे, इन पांच ज्योतिष्क विमानों में इन्द्र सामानिक पारिषद्य आत्मरक्षक अनीकाधिपति । ये पांच प्रकार ही आज्ञा-ऐश्वर्य, भोगोपभोग के विधायक रूप में होते हैं।
इस प्रकार वानव्यन्तरों और ज्योतिष्कों में इन पांच प्रकारों में से(१) इन्द्र वह है जो शेष चार के अधिपति हैं और परम ऐश्वर्य से सम्पन्न होते हैं।
(२) सामानिक-जो इन्द्र के सामान स्थान पर हो वे सामानिक आयु, वीर्य, परिवार, भोग और उपभोग आदि की अपेक्षा वे इन्द्र के ही बराबर होते हैं। उन्हें महत्तर, गुरु, पिता या
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧