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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०२ सू.० २२ परमाणुपुद्गलानामुत्पत्तिहेतुकथनम् २७९ अत्यन्तैकान्तवादग्रहपहिलानामेव तथाविधविकल्पद्वयप्रयोजको वचनप्रयोगः समुद्भवति, न तु--सकल वादमूर्धन्यस्याद्वादसिद्धांतसमाश्रयोपपन्नानुपमसामर्थ्यशालिनां स्याद्वादिनामिति भावः । नहि-परमाण्वन्तरेण सह संघटमानोऽसौ परमाणु: केनचिद्देशेन संयुज्यते, तस्य निरवयवत्वात् । अपि तु स्वयमेवावयवो द्रव्यान्तरावयवद्रव्यरहितः परमाण्वन्तरेण सह भेदेन योगमासा. दयति, न तु-परमाण्वन्तरमाविशति, स हि परमाणुः सक्रियः परमाणुस्थानभूतमाकाशमेवाविशति । ___ अथ परमाणोः यद्यावेशो नास्ति देशे तदा न योगः प्रसज्येत परस्परमनाश्लिष्टत्वाद् अङ्गुलवत्. इति चेन्मैवम्, आवेशतः खलु वयं योगं न प्रतिपादयामः अपि तु निरवयवत्वादेव योगमाचक्ष्महे, तस्य च परमाणो द्रव्यप्रदेशान्तरं संयुक्तं यङ्गुलस्येव न वर्तते किन्तु-स्वयमेवासौ युक्तो भवति. इत्येतावन्मानं ब्रूमहे, । परस्परमनाश्लिष्टत्वहेतुश्चाऽनै कान्तिको वर्तते सूक्ष्मच्छेदप्रविभक्तब्यङ्गुलपर्यन्तवर्तिनौ प्रदेशौ निरन्तरावस्थितौ अनाविशन्तावेव संयुक्तौ भवतः । न तु प्रदेशसूक्ष्मत्वाद् देशान्तरस्याऽसम्भवात् , अङ्गुल्यौ च युक्ते भवतः निरन्तरत्वात् , नहि परस्परावेशो भवति प्रदेशानाम् । तथासति-यमुलाभावप्रसङ्गः स्यात् । अथ परमाणोः विचारशील विद्वान् ऐसा प्रयोग नहीं कर सकते । जिनके मस्तक पर एकान्तवाद का भूत सवार है, वही ऐसे दो विकल्पों को प्रकट करने वाला वचन प्रयोग कर सकते हैं । समस्त वादों में शिरोमणि स्याद्वाद सिद्धांत का आश्रय लेने से जिनमें अनुपम सामर्थ्य उपन्न हो गया हो ऐसे अनेकान्त बादी ऐसे अर्थहीन वाक्यों का प्रयोग नहीं कर सकते । ___ एकपरमाणु जब दूसरे परमाणु के साथ मिलता है तो एक देश से नहीं; क्योंकि उसमें देश अर्थात् अवयव होते ही नहीं है । अपितु स्वयं ही अवयव द्रव्यान्तर के अवयवद्रव्यों से रहित होकर दूसरे परमाणु के साथ, भेद से संयोग को प्राप्त होता है। वह दूसरे परमाणु में समा नहीं सकता । परमाणु सक्रिय होता है और अपनी अवगाहना के स्थान रूप आकाश में ही समाया रहता है । शंका-अगर परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ एक देश से भी प्रवेश नहीं होता तो उनका संयोग ही नहीं हो सकता, क्योंकि वे परस्पर में आश्लिष्ट नहीं हैं, जैसे दो उंगलियों के अलग अलग रहने पर संयोग नहीं होता । समाधान- हम एक दूसरे में प्रविष्ट होने के कारण संयोग नहीं कहते किन्तु निरवयव होने से ही उनका संयोग हो जाता है । दो उंगलियों के समान परमाणु का दूसरा कोई संयुक्त अलग प्रदेश नहीं होता, किन्तु वह स्वयं ही संयुक्त हो जाता है, इतना ही हमारा कथन है। आपका परस्पर में आश्लिष्ट न होना, हेतु अनैकान्तिक है । सूक्ष्म छेदन से अलग अलग हुए दो अंगुलियों के पर्यन्तवर्ती (अन्त के) दो प्रदेश अगर एक दूसरे से सटे हों तो परस्पर में आश्लिष्ट न होने पर भी उनका संयोग होता है । दो अंगुलियाँ आपस में संयुक्त होती हैं, क्योंकि उनके बीच अन्तर नहीं होता, फिर भी एक अंगुली दूसरी में प्रविष्ट नहीं होती । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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