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________________ २८० तत्त्वार्थसत्रे संस्थानवत्वात् सावयव एव परमाणुः सम्भवति, न तु—निरवयवा तस्येति चेन्न संस्थानस्य द्रव्यावयवकृतत्वात् । तच्च-संस्थानं घटादेरवयविनोऽवयवेषु सत्सु भवति, ते चाऽवयवाः परमाणोर्न सन्ति. तस्मान्निरवयवत्वात् परमाणोः संस्थानवत्वमसिद्धम् । अथैवं संस्थानवत्वाभावात्- 'असत्-" परमाणुरिति चेन्मैवम् । आकाशं संस्थानरहितमपि सदेव वर्तते । नतु-'असत्' इतिसंस्थानवत्वाभावो हेतुरनैकान्तिकः, न चा-ऽऽकाशं कन्दुकादिवत् दृष्टपरिधित्वेनाऽभ्युपगम्यते इति संस्थानवत्वं तस्यापि सिद्धमिति वाच्यम् , सकललोक- शास्त्रानुभवविरुद्धत्वात् । किञ्च-सम्प्राप्तिलक्षणो योगो नहि-प्रदेशैरव विधीयते, निष्प्रदेशस्याऽपि स्वयं प्राप्तिरस्त्येवेति । तथाच-सर्वमेव खलु स्थूल द्रव्यं प्रविभज्यमानमवश्यमेव निरवयवनिष्ठं सम्पद्यते, स्थूलस्य सूक्ष्मपूर्वकत्वात् । उक्तञ्च—“सर्व सविभागमविभागप्रविष्टम्-" इति यत्पुनःतेषामेवानन्तानां परमाणूनामेकस्मिन्नेवाकाशप्रदेशेऽवगाढं भवति, तत्तु-अप्रतिघातपरिणामपरिणतत्वाद, अवगन्तव्यम् । व्याप्तकावरकेऽन्यप्रदीपप्रमाणां प्रदीपप्रभयेव, शीततमः शब्दत्वपरिणतपुद्गलानां चाऽप्रतिघातित्वदर्शनात् । शंका परमाणु संस्थानवान् होने से सावयव ही होना चाहिए, निरवयव नहीं । समाधान - संस्थान द्रव्य अवयवों से उत्पन्न होता है । अवयवों के होने पर घट आदि अवयवीवस्तुओं में संस्थान होता है । परमाणु में अवयव होते नहीं, अतएव परमाणु में संस्थान भी नहीं होता। शंका-अगर परमाणु में संस्थान नहीं है तो वह असत् हो जाएगा । समाधान—जिसमें संस्थान न हो उसकी सत्ता ही नहीं होती, ऐसा कोई नियम नहीं आकाश संस्थान से रहित होने पर भी असत् नहीं, सत् ही है । शंका-आकाश भी संस्थानवान् है, क्योंकि उसकी परिधि देखी जाती है, जैसे गेंद । समाधान-यह कथन सम्पूर्ण लोक और शास्त्रों से प्रतिकूल है, साथ ही अनुभव से भी विरुद्ध है। योग या संयोग का अर्थ है-सम्प्राप्ति अर्थात् ठीक तरह मेलाप हो जाना । यह योग प्रदेशों से ही होता हो सो बात नहीं है। जो प्रदेशरहित है, उसकी स्वयं ही संप्राप्ति हो जाती है। ___ इस प्रकार सभी स्थूल पदार्थ यदि विभक्त किए जाएँ तो निस्सन्देह अन्त में बे निरंश होंगे । स्थूल वस्तु सूक्ष्मपूर्वक ही होती है। कहा भी है--सब सविभाग वस्तु अविभाग में प्रविष्ट है।' अनन्त परमाणुओं का एकही आकाशप्रदेश में जो अवगाह होता है, उसका कारण यह है कि वे अप्रतिघाती रूप में परिणत होते हैं- उन अनन्त परमाणुओं में से कोई किसी के अवगाह में रुकावट नहीं डालता । जैसे एक कमरा दीपक के प्रकाश से व्याप्त हो શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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