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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ० २ सू. १८ कालस्य स्वरूपनिरूपणम् २४७ णामादीनां पृथग्ग्रहणं व्यर्थमिति चेन्मैंवम् परमार्थकालस्य-व्यवहारस्य च द्विविधस्यापि कालस्य ग्रहणार्थं परिणामादीनां वर्तमानः पृथक्त्वेनोपादानात् । ___ तत्र-वर्तमानलक्षणः कालः परमार्थकालः, परिणाम क्रियादिलक्षणः कलस्तु-व्यवहारकालो व्यपदिश्यते । एवञ्चा-ऽन्येन परिच्छिन्नः सन् अन्यस्य परिच्छेदहेतुः क्रियाविशेषः काल इति व्यपदिश्यते, । स च कालपुनस्त्रिविधः, भूत- भविष्य-द्वर्त्तमानभेदात् । तत्र-वर्तमानलक्षणे परमार्थकाले कालव्यपदेशो मुख्यः, भूतादिव्यपदेशश्च गौणो भवति । परिणामक्रियादिलक्षणे व्यवहारक ले तु भूतभविष्यद्ववर्तमानव्यदेशो मुख्यः, कालव्यपदेशो गौणो भवति, क्रियावद् द्रव्यापेक्षत्वात्-कालकृतत्वाच्चेति भावः । अथ कालस्य सिद्धत्वेऽपि समयादि सत्वे किं मानमिति चेदुच्यते, तण्डुलानां विक्कदनं-पचनं पाक इत्युच्यते ते पुनस्तण्डुलाः पच्यमानाः शनैः शनैरोदनत्वेन परिणमन्ते, तण्डुलानां पाकेन स्थूलत्वाऽवयवशिथिलत्वादिदर्शनात् समय-समयं प्रतिसूक्ष्म कालो भवतीति निश्चीयते, यदि च प्रतिक्षणं तण्डुलानां सूक्ष्मः पाको न स्यात् तदा-स्थूलपाकस्य लाभो न स्यात् , एवं-सर्वेषां द्रव्याणां प्रतिसमयं स्थूलपर्यायदर्शनात् स्वयमेव वर्तनस्वभावत्वेन बाह्यं निश्चयकालं परमाणुरूपं प्रतीक्ष्य प्रतिक्षणमुत्तरोत्तरसूक्ष्मपर्यायेषु वर्तनं परिणमनम् यद् भवति सा चेद्वर्तना-इति निर्णीयते । तदा-द्रव्याणां प्रतिसमयं परिणामो नैव स्यात् एवं-द्रव्याणां स्थूलपर्यायोऽपि न स्यात् तस्मात् -- सा वर्तना परमाणुलक्षणस्य मुख्यस्य कालस्य निमित्तभूता-इति हेतोः वर्तनया मुख्यकालोऽणुरूपोऽस्तीति निश्चीयते। एवञ्च-वर्तनालक्षणो निश्चयकालस्योपकारोऽवगन्तव्यः । एतादृशस्य परिच्छेद का कारण जो क्रियाविशेष है, वह काल कहलाता है । उसके तीन भेद हैं-भूत, भविष्य, वर्तमान । इनमें से वर्तमान रूप परमार्थ काल में काल का व्यवहार होना मुख्य और भूत आदि का व्यवहार गौण है। परिणाम क्रिया आदि रूप व्यवहार काल में भूत भविष्यत् और वर्तमान का व्यपदेश मुख्य है, काल के व्यपदेश में गौण है । क्योंकि वह क्रियाबान् द्रव्य की अपेक्षा रखता है और कालकृत होता है। शंका-काल द्रव्य तो सिद्ध है परन्तु समय आदि की सत्ता में क्या प्रमाण है ? समाधान-चावलों का पकना पाक कहलाता है । पकते हुए चावल धीरे-धीरे ओदन (भात) रूप में परिणत हो जाते हैं, क्योंकि उनके कठिन अवयव शिथिल होते देखे जाते हैं। इससे सिद्ध होता है कि समय-समय के प्रति सूक्ष्म काल का अस्तित्व है । यदि एक-एक समय में चावल थोड़े-थोड़े न पकते तो उनमें स्थूल पाक दिखलाई न देता । इसी प्रकार सभी द्रव्यों में प्रति समय स्थूल पर्याय देखी जाती है, अतः स्वयं ही वर्त्तन स्वभाव होने के कारण बाह्य निश्चय काल, जो परमाणुरूप है, उसकी अपेक्षा रखकर उत्तरोत्तर सूक्ष्म पर्यायों में जो वर्तन-परिणमन होता हैं, वह वर्त्तना है, ऐसा निश्चय होता है तो द्रव्यों का समय-समय परिणमन होता। फिर तो द्रव्यों की स्थूल पर्याय भी न होती । अतएव वह वर्त्तना परमाणुरूप मुख्य काल को समझने में कारण है શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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