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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू. १५
धर्माधर्माकाशानां लक्षणानि २२७
“निर्वर्तको निमित्तं परिणामी च त्रिवेष्यते हेतुः । “कुम्भस्य कुम्भकारो वर्ता मृच्चेति समसंख्यम् ॥१॥ इति
अस्यार्थः कार्यम्प्रति कारणं त्रिविधं भवति, निर्वर्तकम् - निमित्तम्- परिणामि च तदेव दर्शयति “निर्वर्तकम्” इत्यादि । घटं प्रति त्रिधा हेतुरिष्यते निर्वर्तकः निमित्तम् परिणामी च, तत्रघटस्य निर्वर्तको हेतुः कुम्भकारः, निमित्तं - कारणम्, वर्ताचक्रम्, मृच्च परिणामि - उपादानकारणमिति ।
न खलु तावत्-तज्जलद्रव्यं गते र्हेतुभावं बिभ्राणं गमनमकुर्वाणमपि मत्स्यं हठाद् गन्तुं प्रेरयति, भूमिर्वा-स्वयमेव स्थितवतो द्रव्यस्य स्थानभावमासादयति, न वा स्वयं स्थितिमकुर्वाणं द्रव्यं बलादवनि: स्थापयति, आकाश वाऽवगाहं कुर्वतः स्वत एव द्रव्यस्याऽवगाहं प्रति कार - णतामुपैति, न पुनरवगाहमानं स्वावष्टम्भात् अवगाहयति, स्वयमेव कर्षकाणां कृष्यारम्भं कुर्वतां वर्षाsपेक्षाकारणं भवति ।
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नहि कृषिमकुर्वतो जनान् तदर्थमारम्भयति वर्षाजलम् प्रावृषि वा वर्षत नूतनजलघरध्वनिश्रवणहेतुकोपाधीयमानगर्भा बलाका स्वत एव प्रसूते, न वा प्रसूयमानां बलाकां नूतनजलधरध्वनिर्हठात् प्रसावयति, पुरुषो वा प्रतिबोधं प्राप्य प्रतिबोधहेतुकां विरतिमासादयन् अवद्याद् विरमन् दृश्यते न पुनरविरमन्तं पुरुषं बलात् प्रतिबोधो विरमयतीति भावः ।
अथैवं तर्हि गतिस्थित्यवगाहं प्रति दण्डादिवत् धर्माधर्माकाशानि निमित्तकारणान्येव स्युः नत्वपे - क्षाकारणानि । तथाचापेक्षाकारणतैव हीयते तेषाम्, यतो निर्व्यापारमपेक्षाकारणमुच्यते इति चेन्नैवम् । रूप में परिणत होने वाली मृत्तिका के लिए दंड आदि सहायक हो जाते हैं, उसी प्रकार उक्त द्रव्य सहायक होते हैं । कहा भी है
कारण तीन प्रकार के होते हैं - निर्वर्तक निमित्त और परिणामी । यही यहाँ दिखलाते हैं-घट में तीन कारण माने जाते हैं - निर्वर्त्तक, निमित्त और परिणामी कारण । घटका निर्वर्त्तक कारण कुंभकार है, निमित्तकारण डोरी तथा चाक आदि हैं और परिणामो कारण मृत्तिका है ।
जल मत्स्य की गति का कारण तो है मगर गमन करने वाले मत्स्य को जबर्दस्ती नहीं चलाता । भूमि स्थिति में सहायक है मगर गमन करने वाले को बलात् स्थित नहीं करती । आकाश अवगाहना में कारण है मगर स्वयं अवगाढ द्रव्यों के अवगाह वह निमित्त होता है; जबर्दस्ती अवगाढ नहीं करता, जैसे स्वयं खेत जोतने वाले कृषक के लिए वर्षा निमित्त कारण होती है । स्वयं खेत न जोतने वाले कृषकों को वर्षा का जल बलात् जोतने में प्रवृत्त नहीं करता । वर्षाकाल में नूतन मेघों की ध्वनि को सुनकर बलाका स्वयं गर्भ धारण कर के प्रसव करती है; प्रसव करने वाली बलाका - बकपंक्ति को नूतन मेघ जबर्दस्तो प्रसव नहीं कराते । किसी प्रतिबोधक का निमित्त पाकर मनुष्य प्रतिबोधहेतुक विरति को धारण करता हुआ पाप से विरत होता देखा जाता है; किंतु विरत न होने वाले पुरुष को प्रतिबोध जबर्दस्ती विरत नहीं करता । शंका --- अगर ऐसा है तो गति, स्थिति और अवगाह में धर्म, अधर्म और आकाश
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧