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________________ दीपिकानियुक्तश्च अ. १ सू० ३० जीवानां शरीरभेदकथनम् १३१ यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरं तस्य आहारकशरीरम्, यस्य आहारकशरीरं तस्यऔदारिकशरीरम् । गौतम ! यस्य औदारिकशरीरं तस्य–आहारकशरीरं स्यादस्ति स्याद नास्ति, यस्य आहारकशरीरं तस्य-औदारिकशरीरं नियमादस्ति यस्य खलु भदन्त ! औदारिकशरीरम्. तस्य तैजसशरीरम् , यस्य तैजसशरीरं तस्य- औदारिकशरीरम् । गौतम ! यस्यौदारिकशरीरं तस्य तैजसशरीरं नियमादस्ति, यस्य पुनस्तैजसशरीरं तस्य औदारिकशरीरं स्यादस्ति स्यान्नास्ति । एवं कार्मणशरीरेऽपि यस्य खलु भदन्त-! वैक्रियशरीरं तस्य-आहारकशरीरम् यस्य-आहारकशरीरं तस्य वैक्रियशरीरम् । गौतमा-! यस्य वैक्रियशरीरं तस्याऽऽहारकशरीरं नास्ति । यस्य पुनराहारकशरीरं तस्य वैक्रियशरीरं नास्ति तैजसकार्मणे यथा-औदारिकेण समम् तथैव आहारकशरीरेऽपि समं तैजसकार्मणे तथैव-उच्चारयितव्ये । यस्य खलु भदन्त ? तैजसशरीरं तस्य कार्मणशरीरम् यस्य कार्मणशरीरं तस्य तैजसशरीरम् । __ प्रश्न-भगवन् ! जिसको औदारिक शरीर है उसको आहारकशरीर और जिसको आहाकशरीर है उसको औदारिकशरीर होता है ? उत्तम—गौतम ! जिसको औदारिकशरीर हो उसको आहारक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं; जिसको आहारक शरीर है उसको औदारिक शरीर नियम से होता है। प्रश्न --भगवन् ! जिसको औदारिक शरीर होता है उसके तैजस और जिसको तैजस शरीर होता है उसके औदादिक होता है कि नहीं ? उत्तर—गौतम ! जिसको औदारिक शरीर है उसको तैजस शरीर नियम से होता है; किन्तु जिसक तैजस शरीर हो उसको औदारिक शरीर होता भी है अथव नहीं भी होता । ऐसा ही कार्मण शरीर के लिए भी कहना चाहिए। प्रश्न-भगवन् ! जिसको वैक्रिय शरीर है उसको आहारक शरीर और जिसको आहारक शरीर है उसको वैक्रिय शरीर होता है ? उत्तर-गौतम ! जिसको वैक्रिय शरीर होता है, उसको आहारक शरीर नहीं होता, जिसको आहारक शरीर होता है उसको वैकिय शरीर नहीं होता । तैजस और कार्मण शरीर के विषय में औदारिक के संबन्ध में जैसा कहा है, वैसा ही यहाँ समझना चाहिए और आहारक शरीर के विषय में भी उसी प्रकार कहना चाहिए; अर्थात् जिसक वैक्रिय अथवा आहारक शरीर होता है, उसके तैजस और कार्मण शरीर नियम से होते हैं। प्रश्न-भगवन् ! जिसके तैजस शरीर होता है उसके कार्मण और जिसके कार्मण होता है उसके तैजस होता है ? શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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