SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थसूत्रे १३० इमे उभे लब्धी युगपदेकत्र न सम्भवतो व्यक्तिरूपेण, यस्मिन्-काले वैक्रियम्-तस्मिन्नेव काले नाहारकं सम्भवति. । पर्यायेण पुनः सम्भवतः, वैक्रियं कृत्वा-उपरततद् व्यापारः आहारकं करोत्येव । तदभावाच्च नैककाले पञ्चशरीराणि सम्भवन्ति-एकस्य जीवस्येति भावः । उक्तञ्च प्रज्ञापनायां एकविंशतितम २१ शरोरपदे-“जस्स णं भंते-! ओरालियसरीरं-०। गोयमा? जस्स ओरालियसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं सिय अस्थि-सिय नत्थि, जस्स वेउब्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अत्थि-सिय णत्थि । जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं-गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, जस्स आहारगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं णियमा अस्थि । जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं, जस्स तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं ! गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स तेयगसरीरं णियमा अत्थि, जस्स पुण तेयगसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अस्थि सिय णत्थि, एवं कम्मगसरीरेवि, जस्स णं भंते ! वेउव्वियसरीरं तस्स आहारगसरीरं, जस्स आहारगसरीरं तस्स वेउवियरीरं ! गोयमा ! जस्स वेउव्विसरीरं तस्स आहारगसरीरं णत्थि, जस्स पुण आहारगसरीरं तस्स वेउव्वियसरीरं णत्थि, तेया कम्माइं जहा ओरालिएणं समं तहेव, आहारगसरीरेण वि समं तेयाकम्माइं तहेव उच्चारियव्वाई, जस्स णं भते-! तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं जस्स कम्मगसरीरंतस्स तेयगसरीरं ? गोयमा ! जस्स तेयगसरीरं तस्स कम्मगसरीरं णियमा अत्थि, जस्स वि कम्मगसरीरं तस्स वि तेयगसरीरं णियमाअत्थि " इति छाया-यस्य खलु भदन्त-१ औदारिकशरीरम् ० गौतम ! यस्य-औदारिकशरीरम्-तस्य वैक्रियशरीरं स्यादस्ति स्यान्नास्ति । यस्य वैक्रियशरीरं तस्य-औदारिकशरीरं स्यादस्ति स्यान्नास्ति, औदारिक और आहारक होते हैं (११) किसीको कार्मण, तैजस औदारिक और वैक्रिय होते हैं (१२) किसीको कामेण, तैजस और औदारिक होते हैं। एक जीवको पांच शरीर कभी नहीं हो सकते, क्योंकि आहारक औरक-वक्रिय शरीर साथ साथ नहीं होते, दोनों लब्धियां एकजीवको एक साथ नहीं होती। ये दोनों लब्धियाँ एक साथ एक जीव में व्यक्त रूप में नहीं हो सकती जिस काल में वैक्रिय लब्धि का प्रयोग किया जाता है, उस समय आहारक लब्धि का प्रयोग नहीं होता । हाँ आगे-पीछे प्रयोग किया जा सकता है। पहले वैक्रिय शरीर करके उसके व्यापार से निवृत्त हो जाय तो बाद में आहारकशरीर बना सकता है । ऐसी स्थिति में एक जीव के एक साथ पाँच शरीर नहीं हो सकते । प्रज्ञापना के २१ वें पद में कहा है __ प्रश्न--भगवन् ! जिस जीव को औदारिक शरीर है उसको वैक्रिय शरीर और जिसको वैक्रिय शरीर होता है उसको औदारिक शरीर होता है या नहीं ? उत्तर-गौतम ! जिसको औदारिकशरीर है उसको वैक्रिया शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता । जिसके वैक्रिय है उसके औदारिक शरीर कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होना । શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy