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________________ दीपिकानियुक्तिश्च अ०१ सू० ३० जीवानां शरीरभेदकथनम् १२१ एवञ्च सुवर्णधातुपाषाणसंयोगवत् गगनपृथिव्यादिसंयोगवद् वा तयोर्जीवेन सह संबन्धः नैकान्तत एवाऽनादिः सम्बन्धः अपि तु-द्रव्यास्तिकनयाऽवष्टभ्भेन तयोरतिदीर्घकालप्रवाहादविच्छेदवर्ती निखिलभविष्यदवस्थान्तरबीजभुतो विचित्रपरिणामशक्तिप्रचितपुद्गलद्रव्यैः-राघीयमानप्रचयाऽपचयोऽनादिपुरुषप्रयत्ननिष्पाद्य विविधरूपकर्मविकाराविच्छेदः सन्तानविशेषस्तदभ्युपगमेनाऽयमनादिसम्बन्धी व्यवहियते । आदिमांश्च पर्यायवक्तव्यताभ्यन्तरितत्वात् । अथा—ऽनादिसम्बन्धे सत्यपि एते तावत् तैजसकार्मणशरीर किम् अशेषसंसारिण एव भवतः- आहोस्वित्-कस्यचिदेव संसारिणो भवतः इति चेत्- उच्यते सर्वस्यैव संसारिणो जीवस्य तैजसकार्मणशरीरे भवतः न तु-कस्यचिदेव जीवस्येति भावः । अथ-यथा तैजसकार्मणशरीरेऽनादिसम्बन्धात् सर्वस्य संसारिजीवस्य युगपद्भवतः तथाकिसन्यपि शरीराणि युगपदेकस्य भवन्ति ? उताहो न, इत्याशङ्कायामुच्यते । आदितश्चत्वारि भाज्यानि एकस्य जीपस्य युगपत् तैजसकार्मणे वा भवतः ? तैजसकामणौदारिकाणि वा भवन्ति-२ तैजसकार्मणवैक्रियाणि वा भवन्ति ३ तैजसकार्मणौदारिकवैक्रियाणि वा भवन्ति-४ तैजसकार्नगौदारिकाहारकाणि वा भवन्ति-५ कार्मणमेव वा भवति-६ कार्मणौदारिके वा भवतः-७कार्मणचैक्रिये वा भवतः-८ कार्मणौदारिकवैक्रियाणि वा भवन्ति-९ कार्मणौदारिकाहारकाणि चा भवन्ति-१० कार्मणतैजसौदारिकवैक्रियाणि वा भवन्ति-११कार्मणतैजसौदारिकाणि वा भवन्ति१२ न तु कदाचित्-युगपत् पञ्चशरीराणि भवन्ति एकस्य जीवस्य, नापि-वैक्रियाहारके कस्यचिद् युगपद् भवतः, स्वाभिविशेषात् -लब्धिद्वयाभावात्' इन दोनों शरीरों का सम्बन्ध अनादिकालीन है। किन्तु यह अनादि सम्बन्ध एकान्त रूप से नहीं समझना चाहिए। किन्तु द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से ही समझना चाहिए । दोनों शरीर प्रयाह रूप में अनादि कालिन हैं । तात्पर्य यह है कि इन दोनों शरीरों की परम्परा अनादिकाल से अविच्छिन्न रूप में चली आ रही है और जब तक जीव को मुक्ति प्राप्त नहीं होती तब तक चलती रहती है। परन्तु पर्याय की अपेक्षा से उनका सम्बन्ध आदिमान भी है। द्रव्य से अनादि सम्बन्ध होने पर भी ये तैजस और कार्मण शरीर क्या सभी संसारी जीवों के होते हैं अथवा किसी-किसी के ही होते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि सभी संसारी जीवों के तैजस-कार्मण शरीर होते हैं। ऐसा नहीं कि किसी के हों और किसी के न हों। प्रश्न - जैसे तैजस और कार्मण शरीर अनादि कालीन सम्बन्ध होने से सभी संसारी जीवों के साथ-साथ होते हैं, उसी प्रकार क्या अन्य शरीर भी एक साथ एक जीव को होते हैं,अथवा नहीं ? उत्तर भजना से एक जीव के एक साथ चार शरीर तक हो सकते हैं-(१) एक जीव के एक साथ तैजस और कर्मण-दो शरीर होते हैं (२) किसी के तैजस, कार्मण और औदारिक होते हैं (३) किसी के तैजस, कार्मण और वैक्रिया होते हैं (४) किसी के तैजस, कार्मण, औदारिक और वैक्रिय होते हैं (५) किसी को तैजस, कार्मण, औदारिक और आहारक होते हैं । (६) किसीको कार्मण ही होता है (७) किसीको कार्मण और औदारिक होते हैं (८) किसीको कार्मण और पैक्रिय होते है (९) किसीको कार्मण औदारिक और वैक्रिय होते हैं (१०) किसीको कार्मण શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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