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________________ दीपिशानियुक्तिश्च अ०१ सू. ३० .. जीवानां शरीरभेदकथनम् १२५ सूक्ष्मघननिचयं चेति । अतः सूक्ष्मे व्यपदिश्यते । अथ-औदारिकं शरीरमुत्कृष्टतो योजनसहस्राधिकप्रमाणमेव शास्त्रे प्रतिपादितम् , वैक्रिय पुनर्योजनलक्षप्रमाणमुक्तम् अतः कथं तत्-सूक्ष्म कथ्यते ? इति चेत् अत्रोच्यते प्रमणो यद्यपि-अतिमहवैक्रियं भवति । तथापि-अदृश्यत्वात् सूक्ष्ममेव तद् व्यपदिश्यते, तत्कर्तुरिच्छया पुनदृष्टिगोचरं भवतीति न कोऽपि दोषः एवम्-वैक्रियादाहारकं सूक्ष्म भवति तस्य बहुतरपुद्गलद्रव्यारब्धत्वेऽपि सूक्ष्मतरपरिणतत्त्वात्-आहारकात् तैजसमतिसूक्ष्मपरिणामपरिणतं बहुतरपुद्गलद्रव्यारब्धं च भवति । तैजसात्-कार्मणमतिसूक्ष्ममतिबहुकद्रश्व्यप्रचितं च भवति तरमात् आपेक्षिकीसूक्ष्मता तेषामवगन्तव्या, न तु-सूक्ष्मनामकर्मोदयजनिता सूक्ष्मता भवति इति भावः । अथैवं तावत् कारणानां सूक्ष्मत्वात् अतिबहुपुद्गलद्रव्यारब्धमपि प्रचयविशेषात् परं परं शरीरं सूक्ष्मं भवतु-३ किन्तु-उत्तरोत्तरेषु बहुतरद्रव्यारब्धत्वे किं प्रमाणमितिचेत्-? उच्यते तेषामौदारिकशरीराणां परं परमेव प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं भवति तैजसं-कार्मणं च विहाय । तथाचौदारिकशरीरप्रदेशेभ्यो वैक्रियशरीरप्रदेशा असंख्येयगुणा भवन्ति वैक्रियशरीरअपेक्षा वैक्रिय शरीर बहुतर द्रव्यों वाला, सूक्ष्म और सघन परिणमन वाला होता है। इसी कारण वह औदारिक की अपेक्षा सूक्ष्म कहा जाता है। प्रश्न-औदारिक शरीर शास्त्र में अधिक से अधिक एक हजार योजन से कुछ अधिक परिमाण वाला कहा गया है किन्तु वैक्रिय शरीर कुछ अधिक एक लाख योजन परिणाम वाला होता है। फिर भी उसे सूक्ष्म कैसे कहा ? उत्तर—यद्यपि प्रमाण की अपेक्षा वैक्रिय शरीर बहुत बड़ा होता है तथापि अदृश्य होने के कारण वह सूक्ष्म ही कहलाता है । हाँ, वैक्रिय शरीर बनाने वाले की इच्छा हो तो वह दृष्टिगोचर भी हो जाता है, अतएव उसे सूक्ष्म कहने में कोई दोष नहीं है। इसी प्रकार वैक्रिय की अपेक्षा आहारक शरीर सूक्ष्म होता है । वह बहुसंख्यक द्रव्यों से उत्पन्न होने पर भी सूक्ष्मतर परिणाम वाला होने से सूक्ष्म है । आहारक की अपेक्षा तैजस शरीर बहुत सूक्ष्म और बहुत द्रव्यों से बना होता है । तैजस शरीर की अपेक्षा कार्मण शरीर बहुत अधिक द्रव्यों से बना हुआ होने पर भी अत्यन्त सूक्ष्म होता है । यहाँ उत्तरोत्तर शरीरों में जो सूक्ष्मता का विधान किया गया है, वह आपेक्षिक है, सूक्ष्मनाम कर्म के उदय से उत्पन्न सूक्ष्मता नहीं। प्रश्न—कारणों की सूक्ष्मता होने से बहुसंख्यक पुद्गलों द्वारा रचित होने पर भी प्रचय की विशेषता के कारण आगे-आगे के शरीर भले सूक्ष्म हों किन्तु आगे-आगे के शरीर बहुसंख्यक पुद्गलों से बने हैं, इसमें प्रमाण क्या है ? उत्तर-औदारिक आदि शरीरों का निर्माण क्रमशः असंख्यात गुणे अधिक प्रदेशों से होता है। अर्थात् औदारिक शरीर की अपेक्षा वैक्रिय शरीर के प्रदेश असंख्यातगुणे શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧
SR No.006385
Book TitleTattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages1032
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size60 MB
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