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तत्त्वार्थस्
तत्त्वार्थनिर्युक्तिः तेषां च - औदारिकशरीराणामुत्तरोत्तरं सूक्ष्मं विज्ञेयम् । तद्यथाऔदारिकाद्-वैक्रियं सूक्ष्मं, वैक्रियादाहारकम् । आहारकात् - तैजसम्, तैजसात् - शरीरात्-कार्मणं सूक्ष्मं भवति । तथा च - औदारिकादीनां शरीराणां पूर्वं पूर्वमपेक्ष्य परं परं सूक्ष्मम्, सूक्ष्मं तद् यत्रास्ति, तत्सूक्ष्मम्-अर्शआदित्वादच् ।
एवञ्च उत्तरोत्तरं शरीरं सूक्ष्मपरिणाम पुद्गलद्रव्यारब्धं सूक्ष्मत्वादेव च प्रायशो वैक्रियादिचतुष्टयस्य दर्शनं नोपपद्यते । अत्र परिणति विशेषमासाद्य केचन पुद्गलाः अल्पेऽपि सन्तोति स्थूलतया भेण्डकाष्ठादिषु वर्तन्ते केचन पुनर्निचितपरिणाम भाजोऽतिभूयांसोऽपि हस्तिदन्तादिषु सूक्ष्मावस्थामासादयन्ति ।
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प्रसिद्धमेतत् । प्रायशस्तुलामारोपिते भेण्डदन्तखण्डे प्रमाणतः सदृशे परिणामागतामतिविप्रकृष्टां धियमातनोति इति, तदेतत्-परिशिथिलां परिणतिमनपेक्ष्य निचिततरां परिणति पुद्गलानामाधत्ते । अन्यथा— तुल्यप्रमाणत्वे सति लाघवं गौरवं वा, प्रतिपत्तुमशक्यम् भवेत् । तस्मात् पूर्वं पूर्वं शरीरमुत्तरोत्तरशरीरापेक्षया परिस्थूलद्रव्यारब्धमतिशिथिलनिचयमद च भवति, उत्तरं सूक्ष्मं प्रत्यारब्धमतिघननिचयमणु च भवति । पुद्गलद्रव्यपरिणतेर्विचित्रत्वात् ।
एवञ्चौ–दारिकं शरीरमल्पद्रव्यं स्थूलं शिथिलनिचयं भवति, तदपेक्षया - वैक्रियं बहुतरद्रव्यं
तत्त्वार्थनिर्युक्त — औदारिक आदि शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं, यथा - औदारिक से वैक्रिय सूक्ष्म है, वैक्रिय से आहारक, आहारक से तैजस और तैजस से कार्मण शरीर सूक्ष्म है । इस प्रकार औदारिक आदि पाँच शरीरों में पूर्व-पूर्व की अपेक्षा उत्तर - उत्तर शरीर सूक्ष्म हैं । इस प्रकार उत्तर - उरत्त शरीर सूक्ष्म द्रव्यों से निर्मित होने के कारण सूक्ष्म हैं और इसी कारण औदारिक शरीर के अतिरिक्त शेष चार वैक्रिय आदि देते हैं । पुद्गलों का परिणमन विचित्र प्रकार का है । कोई-कोई पुद्गल थोड़े होने पर भी पोले- पोले होने से स्थूल दिखाई पड़ते हैं, जैसे भिंडी या काष्ठ के पुद्गल; कोई इससे विपरीत अत्यन्त सघन रूप में परिणत होते हैं । वे बहुत अधिक होने पर भी सूक्ष्म - परिणत होने से अल्प मालूम होते हैं, जैसे हाथीदांत के पुद्गल ।
शरीर प्रायः दिखाई नहीं
यह बात प्रसिद्ध है कि लम्बाई-चौड़ाई में बराबर भिंडी के और हाथीदांत के खण्ड को यदि तराजू पर तोला जाय तो उनके तोल में बहुत अन्तर होता है । इससे सिद्ध होता है कि कोई पुद्गल सघन एवं सूक्ष्म परिणमन वाले और कोई शिथिल परिणमन वाले होते हैं; अन्यथा जब उनका प्रमाण तुल्य है तो लघुता और गुरुता क्यों होती ? इस कारण पहलेपहले के शरीर उत्तरोत्तर शरीरों की अपेक्षा स्थूल द्रव्यों से बने हुए, और शिथिल परिणमन वाले होते हैं और उत्तरोत्तर शरीर सूक्ष्म द्रव्यों से निर्मित, सघन परिणति वाले और
सूक्ष्म होते हैं । यह पुद्गल द्रव्यों के परिणमन की विचित्रता है ।
इस प्रकार औदारिक शरीर अल्पद्रव्य वाला, स्थूल और पोला होता है, उसकी
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧