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________________ श्रीकल्पसूत्रे ॥६४॥ पह - पहेसु सित - सुइ - संमह - रत्थंतरा -वण-वीहियं मंचाइमंचकलियं नाणाविह-राग-भूसिय-ज्झयपडाग - मंडियं लाउलोइयजुत्तं गोसीस - सरस -रत्तचंदण - दद्दर - दिन - पंचगुलितलं तोरण - पडिदुवार - देस भागं उवचियचंदणकलसं चंदण-घड-सुकयआसत्तो - वसत - विउल - वट्ट - बग्घारिय- मल्लदाम - कलावं पंचवन्न - सरस- सुरहि-मुकपुप्फपुंजो - क्यार- कलियं कालागुरु- पवर- कुंदरुक्क - तुरुक - धूव- डज्झत-मघमघंत - गंधुद्ध्या - भिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-नहग-जल-मल मुट्ठिय- वेलंबग - पवग- कहग- पाढग - लासग - आरक्खग- लेख - तूणइल्लवीणिय - श्रणेगतालायरा - णुचरियं कारावेइ । जूअसहस्सं मुसलसहस्से च आणाचा एगओ ठवावेर, जण्णं अस्सि महोच्छवंसि को सगडे वा हले वा णो वाहउ, नो वा मुसलेहिं किंचिवि खंडउत्ति ||०६७॥ छाया-ततः खलु उदञ्श्चदुत्सवः सिद्धार्थभूपः प्रत्यूषकालसमये प्रमोद - कदम्ब - मोचक - प्रभुजन्मसूचक-याचक - निकुरम्बं दैन्य- सैन्य - पराभव - शून्यमकरोत् । नागरिकसमाजवनमपि राजराज - कमला- विलास -हास - वसुसलिला - ssसारैः स्फारैः दुःख - दावानल - समुज्ज्वलत्कीलकवल- प्रबल - भयात् विमोच्य उद्भिन्दद-मन्दा-नन्द मूल का अर्थ- 'तर णं' इत्यादि । तत्पश्चात् राजा सिद्धार्थने उत्सव मनाना आरंभ किया । प्रातःकाल होने पर उन्होंने आनन्द के समुदाय को देनेवाले प्रभु जन्म के सूचक अन्तःपुरके भृत्यों के तथा याचकों के समूह को दैन्यसैन्य के पराभव से शून्य कर दिया- भगवान् के जन्मके हर्ष के उपलक्ष्य में प्रभुजन्म सूचक अन्तःपुरके दासदासियों को और दरिद्रों को इतना दान दिया कि उनकी दरिद्रता दूर हो गई। नागरिक समाज रूपी वन को भी, कुबेर की सम्पदा का उपहास कनेरवाले धनरूपी पानी की विशाल धाराओं से वर्षा करके, दुःखरूपी दावानल की जाज्वल्यमान शिखाओंका ग्रास बनने भूजना अर्थ - "तपणं" इत्याहि राम सिद्धार्थे उत्सव मनाववानुं श३ यु. प्रातःस थतां, प्रभुना જન્માત્સવ નિમિત્ત, અંતઃપુરના નાકરવર્ગનું દારિદ્ર ીટાડી દીધું-દાસ-દાસી નેાકર-ચાકર વિગેરેને અઢળક દ્રવ્ય આપ્યુ, ને તેઓની હમેશની કગાલીયત મટાડી દીધી. દેશના નાગિરકેની દિરદ્રતા દૂર કરવા, કુબેરના ભંડારને પણ ચડી જાય તેવા તેમના ભંડાર હતા. આ ભંડાર માંહેનુ ધન, વરસાદની ધારાએ ની માફક વહેતું મુકવામાં આવ્યું. આ ધન દ્વારા, દુ:ખાના દાવાનળ એલવવામાં આવ્યા, શ્રી કલ્પ સૂત્ર : ૦૨ कल्प मञ्जरी टीका सिद्धार्थकृत भगवज्जन्मोत्सवः । ॥६४॥
SR No.006382
Book TitleKalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages509
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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