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________________ श्रीकल्प 'अलंबुसा' इत्यादि। स्पष्टम् , नवरम्-चामरहस्तगता:चामरधारिण्यः । ४८। 'चित्ता' इत्यादि। स्पष्टम् , नवरम्-दिपिकाहस्तगताः-दीपधारिण्यश्चतस्रः । ५२। 'रूवा' इत्यादि। स्पष्टम् , नवरम्-रूपादयश्चतस्रो नाभिनालच्छेदिन्यः । ५६ । रुचकपर्वतो हि जम्बूद्वीपस्थमेरुपर्वतस्य प्राकाररूपेण वर्तत इति बोध्यम् ॥ ___ 'तए णं इत्यादि । ततः खलु ताः पूर्वोक्ताः षट्पञ्चाशदपि दिक्कुमार्यः 'हे भगवन् ! भवान् पर्वतायुष्कापर्वतवत् चिरायुष्को भवतु' इति-इत्थम् आशीर्वचनं तीर्थकरम्-उदित्वा-उक्त्वा आगायन्त्यः परिगायन्त्योऽतिष्ठन् ॥ सू० ५८॥ कल्पमञ्जरी टीका |॥२०॥ अलंबुषा आदि स्पष्ट है। सिर्फ यह विशेषता है कि ये चामरधारिणी थीं ।४८) चित्रा आदि स्पष्ट है। सिर्फ यह विशेषता है कि ये चार दीपक लिये थीं ।५२। रूपा आदि स्पष्ट है। सिर्फ-यह विशेषता है कि ये चार नाल छेदन करने वाली थीं ॥५६॥ रुचक पर्वत जम्बूद्वीप के पाकार (परकोटे) के रूप में अवस्थित है, ऐसा समझना चाहिए। यह सब छप्पन दिशाकुमारिया 'हे भगवन् ! आप पर्वत के समान चिरायु हों' इस प्रकार तीर्थकर को आशीष के वचन कह कर आगान और परिगान करती हुई स्थित हुई ।मु०५८॥ मेघङ्करादिदिक्कुमा रीणाम् आगमनम् अलम्बुषा माहिना म ५५ ५४ छे. विशेषता यही है दिशाभारियाना डायमां, 'यामर' २सा इतi. (४८) चित्रा माहि २५४ छ. विशेषभ त थारना डायम हवा तi. (५२) रूपा माहि २५ट छे. विशेषता - यार हशामारीया नाण छ। ४२वावाणीती . (५६) २४ પહાડ, જંબૂ દ્વીપના પ્રકાર સમાન લેખાય છે. આ સર્વ છપ્પન દિશાકુમારિકાઓ, ભગવાનને, હે ભગવન્! “તમે પર્વતની સમાન ચિરાયુ થાઓ” એવા આશિષવચને બેલી, ગાતાં ગાતાં ઉભી રહી. (સૂ૦૫૮) ॥२०॥ શ્રી કલ્પ સૂત્ર: ૦૨.
SR No.006382
Book TitleKalpsutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages509
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_kalpsutra
File Size37 MB
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