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श्रीकल्प
सूत्र ॥१९॥
टीका-'मेहंकरा' इत्यादि। स्पष्टम् , ऊर्ध्वलोकात्-भद्रशालवनस्य समभूतलात् पञ्चशतयोजनोचनन्दनबनगतपश्चशतयोजनप्रमाणाऽकूटरूपस्थानात् । अदूरसामन्ते-नातिदूरे नातिसमीपे । १६ ।
'नंदोत्तरा' इत्यादि । स्पष्टम् , नवरम्-आदर्शहस्तगताः-हस्तगत हस्तस्थः आदर्शो-दर्पणो यासां ताः= हस्तगृहीतदर्पणा इत्यर्थः। 'हस्तगत' शब्दस्य परनिपातः प्राकृतत्वात् । एवमग्रेऽपि बोध्यम् ।२४।
'समाहारा' इत्यादि। स्पष्टम् , भृङ्गारहस्तगताः-भृङ्गार:='झारी' इति भाषाप्रसिद्धः, स हस्तगतो यासां ताः ॥३२॥
'इलादेवी' इत्यादि। स्पष्टम् , नवरम्-तालद्वन्तहस्तगताः-तालवृन्तानि-व्यजनानि हस्तगतानि यासां ता:-तालव्यजनधारिण्य इत्यर्थः । ४० ।
टीका का अर्थ-'मेहंकरा' इत्यादि । 'मेहंकरा' इत्यादिका अर्थ स्पष्ट है। केवल विशेष इतना ही है कि ये अर्ध्व लोक से आई अर्थात् भद्रशाल वन के सम भूभाग से पांच सौ योजन ऊँचा नन्दन वन है, उसमें पांच सौ पाँच सौ योजन प्रमाणवाले आठ कूटों से आई। 'अदूरसामंते' का अर्थ है-न अधिक दूर, न अधिक समीप । इन्होंने पांच वर्ण के फूलों की वर्षा की।
'नंदोत्तरा' आदिका अर्थ स्पष्ट है। केवल 'आदर्शहस्तगताः' का अर्थ है-उनके हाथों में दर्पण थे ।२४॥ समाहारा इत्यादि स्पष्ट है। 'भृङ्गारहस्तगताः' अर्थात् इनके हाथों में झारी थी ।३२। इलादेवी आदि स्पष्ट है। केवल इनके हाथों में ताड़-पंखे थे, इतना समझना चाहिए ।४।
मेघङ्करादिदिक्कुमारीणाम् आगमनम्
टीना अथ-'मेधकरा' त्याहि. सूत्रनाम स्पष्ट छ. ३५ मा छे ४थी मापी એટલે ભદ્રશાળ વનની સમભૂમિથી પાંચશે જોજન ઊંચું નંદનવન છે. ત્યાં પાંચ પાંચસે જન પ્રમાણવાળા माटो मावेस छेतेपूटाथी भावी. अदूरसामंते ने। अर्थ-नहि २ नाइन, तेव। थाय छे. (१६)
'नंदोत्तरा विगैरेन। म २५ट छे. वण-आदर्शहस्तगताः न मय वो याय छे तेभाना डायमा ६५ तi. (२४) समाहारा त्यादि २५४ छ. भृङ्गारहस्तगताः न म सवा थाय छे या 'आरी' ती. (३२) इलादेवी विरेन। म स्पष्ट छे. ५४तत्याना डायमा ताना मातi, तेवय महि ४२०५ छे. (४०)
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श्री ३९५ सूत्र:०२